________________
३६० भीमद् राजचन्द्र
[पत्र ३८८, ३८९ कारणसे जो स्थिरता आती है, वह आत्माको प्रगट करनेका हेतु होती है । श्वासोच्छ्रासकी स्थिरता होना, यह एक प्रकारसे बहुत कठिन बात है । उसका सुगम उपाय एकतार मुखरस करनेसे होता है, इसलिये वह विशेष स्थिरताका साधन है। परन्तु वह सुधारस-स्थिरता अज्ञानभावसे फलीभूत नहीं होती, अर्थात् कल्याणरूप नहीं होती; तथा उस बीज-ज्ञानका ध्यान भी अज्ञानभावसे कल्याणरूप नहीं होता इतना हमें विशेष निश्चय भासित हुआ करता है। जिसने वेदनरूपसे आत्माको जान लिया है, उस ज्ञानीपुरुषकी आज्ञासे वह कल्याणरूप होता है, और वह आत्माके प्रगट होनेका अत्यंत सुगम उपाय है। ____ यहाँ एक दूसरी भी अपूर्व बात लिखना सूझती है । आत्मा एक चंदन वृक्षके समान है। उसके पास जो जो वस्तुयें विशेषतासे रहती हैं, वे सब वस्तुयें उसकी सुगंधका विशेष बोध करती हैं। जो वृक्ष चंदनके पासमें होता है, उस वृक्षमें चन्दनकी गंध विशेषरूपसे स्फुरित होती है। जैसे जैसे वृक्ष दूर होता जाता है, वैसे वैसे सुगंध मंद होती जाती है; और अमुक मर्यादाके पश्चात् असुगंधरूप वृक्षोंका वन आरंभ हो जाता है, अर्थात् उनमें चंदनकी सुगंध नहीं रहती। इसी तरह जबतक यह आत्मा विभाव-परिणामका सेवन करती है, तबतक उसे चंदन-वृक्ष कहते हैं, और उसका सबके साथ अमुक अमुक सूक्ष्म वस्तुका संबंध है, उसमें उसकी छायारूप सुगंध विशेष पड़ती है; जिसका ज्ञानीकी आज्ञासे ध्यान होनेसे आत्मा प्रगट होती है।
पवनकी अपेक्षा भी सुधारसमें आत्मा विशेष समीप रहती है, इसलिये उस आत्माकी विशेष छाया-सुगंधका ध्यान करना योग्य उपाय है । यह भी विशेषरूपसे समझने योग्य है।
३८८ .
बम्बई, आसोज वदी ३, १९४९
प्रायः व्याकुलताके समय चित्त व्याकुलताको दूर करनेकी शीघ्रतामें योग्य होता है या नहीं, इस बातकी सहज सावधानी, कदाचित् मुमुक्षु जनको भी कम हो जाती है; परन्तु यह बात योग्य तो इस तरह है कि उस प्रकारके प्रसंगमें कुछ थोड़े समयके लिये चाहे जैसे काम-काजमें उसे मौनके समान-निर्विकल्पकी तरह-कर डालना ।व्याकुलताको बहुत लम्बे समयतक कायम रहनेवाली समझ बैठना योग्य नहीं है । और यदि वह व्याकुलता बिना धीरजके सहन की जाती है तो वह अल्पकालीन होनेपर भी अधिक कालतक रहनेवाली हो जाती है। इसलिये इश्वरेच्छा और " यथायोग्य" समझकर मौन रहना ही योग्य है । मौनका अर्थ यह करना चाहिये कि अंतरमें विकल्प और संताप न किया करना।
बम्बई, आसोज वदी १९४९
आतमभावना भावता, जीव लहे केवलज्ञान रे ।