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पत्र ३२६, ३२७] विविध पत्र आदि संग्रह-२५वाँ वर्ष
एक क्षणभरके लिये भी इस संसर्गमें रहना अच्छा नहीं लगता; ऐसा होनेपर भी बहुत समयसे इसे सेवन किये चले आते हैं, और अभी अमुक कालतक सेवन करनेका विचार रखना पड़ा है।
और तुम्हें भी यही अनुरोध कर देना योग्य समझा है । जैसे बने तैसे विनय आदि साधनसे संपन्न होकर सत्संग, सत्शास्त्राभ्यास, और आत्मविचारमें प्रवृत्ति करना ही श्रेयस्कर है ।
एक समयके लिये भी प्रमाद करनेकी तीर्थंकरदेवकी आज्ञा नहीं है ।
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बम्बई, श्रावण वदी १९४८ जिस पुरुषको द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे और भावसे किसी भी प्रकारकी प्रतिबद्धता नहीं रहती, वह पुरुष नमन करने योग्य है, कीर्तन करने योग्य है, परम प्रेमपूर्वक गुणगान करने योग्य है, और फिर फिरसे विशिष्ट आत्मपरिणामसे ध्यान करने योग्य है।
आपके बहुतसे पत्र मिले हैं । उपाधि संयोग इस प्रकारसे रहता है कि उसकी विद्यमानतामें पत्र लिखने योग्य अवकाश नहीं रहता, अथवा उस उपाधिको उदयरूप समझकर मुख्यरूपसे आराधना करते हुए, तुम जैसे पुरुषको भी जानबूझकर पत्र नहीं लिखा; इसके लिये क्षमा करें।
जबसे चित्तमें इस उपाधि-योगकी आराधना कर रहे हैं, उस समयसे जैसा मुक्तभाव रहता है, वैसा मुक्तभाव अनुपाधि-प्रसंगमें भी नहीं रहता था, ऐसी निश्चल दशा मंगसिर सुदी ६ से एकधारासे चली आ रही है।
३२७ बम्बई, भाद्रपद सुदी १ भौम. १९४८
ॐसत् तुम्हारा वैराग्य आदि विचारोंसे पूर्ण एक सविस्तर पत्र करीब तीन दिन पहले मिला था। जीवको वैराग्य उत्पन्न होना, इसे हम एक महान् गुण मानते हैं । और इसके साथ शम, दम, विवेक आदि साधनोंका अनुक्रमसे उत्पन्न होनेरूप योग मिले तो जीवको कल्याणकी प्राप्ति सुलभ हो जाती है, ऐसा मानते हैं। (ऊपरकी लाइनमें जो योग शब्द लिखा है उसका अर्थ प्रसंग अथवा सत्संग करना चाहिये )।
अनंत कालसे जीव संसारमें परिभ्रमण कर रहा है, और इस परिभ्रमणमें इसने अनंत तप, जप, वैराग्य आदि साधन किये मालूम होते हैं, फिर भी जिससे यथार्थ कल्याण सिद्ध होता है, ऐसा एक भी साधन हो सका हो, ऐसा मालूम नहीं होता । ऐसे तप, जप, अथवा वैराग्य, अथवा दूसरे साधन केवल संसाररूप ही हुए हैं। ऐसा जो हुआ है वह किस कारणसे हुआ ! यह बात फिर फिरसे विचारने योग्य है । ( यहाँपर किसी भी प्रकारसे जप, तप, वैराग्य आदि साधन सब निष्फल हैं, ऐसा कहनेका अभिप्राय नहीं है, परन्तु ये जो निष्फल हुए हैं, उसका क्या हेतु होगा, यह विचार करनेके लिये यह लिखा गया है। जिसे कल्याणकी प्राप्ति हो जाती है, ऐसे जीवको वैराग्य आदि साधन तो निश्चयसे होते ही हैं)।