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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र २१७
दुआ करती है। उसके होनेके कारण ये हैं कि " वह 'सत्' है" इस प्रकारको निःशंकपनेसे दृढ़ता नहीं हुई, अथवा " वह परमानंदरूप ही है " ऐसा निश्चय नहीं हुआ; अथवा तो मुमुक्षुतामें भी कुछ आनन्दका अनुभव होता है, इससे बाह्य साताके कारण भी कई बार प्रिय लगते हैं, और इस कारण इस लोककी अल्प भी सुखेच्छा रहा करती है, जिससे जीवकी योग्यता रुक हो जाती है।
__ याथातथ्य परिचय होनेपर सद्गुरुमें परमेश्वर-बुद्धि रखकर उनकी आज्ञानुसार चलना, इसे परम विनय कहा है। उससे परम योग्यताकी प्राप्ति होती है । जबतक यह परम विनय नहीं आती, तबतक जीवको योग्यता नहीं आती।
कदाचित् ये दोनों प्राप्त भी हुए हों, तथापि वास्तविक तत्त्व पानेकी कुछ योग्यताकी कमीके कारण पदार्थ-निर्णय न हुआ हो, तो चित्त व्याकुल रहता है, मिथ्या समता आती है, और कल्पित पदार्थमें 'सत्' की मान्यता होने लगती है। जिससे बहुत काल व्यतीत हो जानेपर भी उस अपूर्व पदार्थसंबंधी परम प्रेम उत्पन्न नहीं होता, और यही परम योग्यताकी हानि है।
ये तीनों कारण, हमें मिले हुए अधिकांश मुमुक्षुओंमें हमने देखे हैं। केवल दूसरे कारणकी यत्किचित् न्यूनता किसी किसीमें देखी है। और यदि उनमें सब प्रकारसे परम विनयकी कमीकी पति होनेका प्रयत्न हो तो योग्य हो, ऐसा हम मानते हैं। परम विनय इन तीनोंमें बलवान साधन है। अधिक क्या कहें ! अनन्त कालमें केवल यही एक मार्ग है।
. पहिला और तीसरा कारण दूर करनेके लिये दूसरे कारणकी हानि करनी और परम विनयमें रहना योग्य है। यह कलियुग है, इसलिये क्षणभर भी वस्तुके विचार बिना न रहना ऐसी महात्माओंकी शिक्षा है।
(२) मुमुक्षुके नेत्र महात्माको पहिचान लेते हैं।
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बम्बई, आषाढ़ सुदी १३, १९४७
मुखना सिंधु श्रीसहजानन्दजी, जगजीवनके जगवंदजी;
शरणागतना सदा सुखकंदजी, परमस्नेही छो परमानन्दजी। हालमें हमारी दशा कैसी है, यह जाननेकी आपकी इच्छा है, परन्तु वह जैसे विस्तारसे चाहिये वैस विस्तारसे नहीं लिखी जा सकती, इसलिये इसे पुनः पुनः नहीं लिखी । यहाँ संक्षेपमें लिखते हैं।
___ एक पुराण-पुरुष और पुराण-पुरुषकी प्रेम-संपत्ति बिना हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता; हमें किसी भी पदार्थमें बिलकुल भी रुचि नहीं रही; कुछ भी प्राप्त करनेकी इच्छा नहीं होती; व्यवहार कैसे चलता है, इसका भी भान नहीं; जगत् किस स्थितिमें है, इसकी भी स्मृति नहीं रहती; शत्रुमित्रमें कोई भी भेदभाव नहीं रहा; कौन शत्रु है और कौन मित्र है, इसकी भी खबर रक्खी नहीं जाती हम देहधारी हैं या और कुछ, जब यह याद करते हैं तब मुश्किलसे जान पाते हैं। हमें क्या करना है। यह किसीकी भी समझमें आने जैसा नहीं है। हम सभी पदार्थोसे उदास हो जानेसे चाहे जैसे