________________
पत्र २२०, २२१, २२२] विविध पत्र आदि संग्रह-२४याँ वर्ष
.
२५७
२२० बम्बई, श्रावण सुदी १ बुध. १९४७ सर्वशक्तिमान हरिकी इच्छा सदैव सुखरूप ही होती है, और जिसे भक्तिके कुछ भी अंश प्राप्त हुए हैं ऐसे पुरुषको तो ज़रूर यही निश्चय करना योग्य है कि " हरिकी इच्छा सदैव सुखरूप ही होती है"। आपका वियोग रहनेमें भी हरिकी ऐसी ही इच्छा है, और वह इच्छा क्या होगी, यह हमें किसी तरहसे मालूम हुआ है जिसे समागम होनेपर कहेंगे।
हम आपसे "ज्ञानधारा" संबंधी थोड़ा भी मूल-मार्ग इस बारके समागममें कहेंगे और वह मार्ग पूरी तरहसे इसी जन्ममें आपसे कहेंगे, ऐसी हमें हरिकी प्रेरणा है, ऐसा मालूम होता है ।
ऐसा मालूम होता है कि आपने हमारे लिये ही जन्म धारण किया होगा । आप हमारे अत्यन्त उपकारी हैं, आपने हमें हमारी इच्छानुसार सुख दिया, इसके लिये हम नमस्कारके सिवाय दूसरा क्या बदला दें!
परन्तु हमें ऐसा मालूम होता है कि हरि हमारे हाथसे आपको पराभक्ति दिलायेगा; हरिके स्वरूपका ज्ञान करायेगा; और इसे ही हम अपना महान् भाग्योदय समझेंगे।
हमारा चित्त तो बहुत ही अधिक हरिमय रहा करता है, परन्तु संग सर्वत्र कलियुगका ही रहता है। रात दिन मायाके प्रसंगमें ही रहना होता है; इसलिये चित्तका पूर्ण हरिमय रह सकना बहुत ही कठिन होता है और तबतक हमारे चित्तका उद्वेग भी नहीं मिटेगा।
ईश्वरार्पण.
२२१ बम्बई, श्रावण सुदी ९ गुरु. १९४७. चमत्कार बताकर योगको सिद्ध करना, यह योगीका लक्षण नहीं है।
सर्वोत्तम योगी तो वही है कि जो सब प्रकारकी स्पृहासे रहित होकर सत्यमें केवल अनन्य निष्ठासे सब प्रकारसे सत्का ही आचरण करता है, और जिसको जगत् विस्मृत हो गया है। हम यही चाहते हैं।
२२२ बम्बई, श्रावण सुदी ९ गुरु. १९४७ खंभातसे पाँच-सात कोसपर क्या कोई ऐसा गाँव है कि जहाँ अज्ञातरूपसे रहें तो अनुकूल हो ! यदि ऐसा कोई स्थल ध्यानमें आये कि जहाँ जल, वनस्पति और सृष्टि-रचना ठीक हो तो लिखना । पर्युषणसे पहले और श्रावण वदी १ के बाद यहाँसे थोड़े समयके लिये निवृत्त होनेकी इच्छा है। जहाँ हमें लोग धर्मके संबंधसे भी पहिचानते हों, ऐसे गाँवमें भी हालमें तो प्रवृत्ति ही मानी है; इसलिये हालमें खंभात आनेका विचार संभव नहीं है।
हालमें थोड़े समयके लिये यह निवृत्ति लेना चाहता हूँ। जबतक सर्वकालके लिये (आयुपर्यंत) निवृत्ति पानेका प्रसंग न आया हो तबतक धर्म-संबंधसे भी प्रगटमें आनेकी इच्छा नहीं है । जहाँ मात्र निर्विकारपनेसे रहा जा सके ऐसी व्यवस्था करना ।
समाधि.