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२०वाँ वर्ष १३ ववाणीया, १९४४ प्र. चैत्र सुदी ११॥ रवि.
क्षणभंगुर दुनियामें सत्पुरुषका समागम होना, यही अमूल्य और अनुपम लाभ है ।
१४ ववाणीया, आषाढ वदी ३ बुध. १९४४ यह एक अद्भुत बात है कि
चार पाँच दिन हुए बॉई आँखमें, एक छोटा चक्र जैसा बिजलीकी तरहका प्रकाश हुआ करता है, जो आँखसे जरा दूर जाकर अदृश्य हो जाता है । यह लगभग पाँच मिनिटतक होता रहता है, अथवा पाँच मिनिटतक दिखाई देता है । यह मेरी दृष्टिमें बारम्बार देखनेमें आता है । इस संबंधमें किसी प्रकारकी भी भ्रमणा नहीं। इसका कोई निमित्तकारण भी मालूम नहीं होता । इससे बहुत आश्चर्य पैदा होता है । आँखमें दूसरा किसी भी प्रकारका विकार नहीं है किन्तु प्रकाश और दिव्यता विशेष रूपसे रहा करती है । मालूम होता है कि लगभग चार दिन पहिले दुपहरके २-२० मिनिटपर एक आश्चर्यपूर्ण स्वप्न आनेके बाद यह शुरू हुआ है । अंतःकरणमें बहुत प्रकाश रहा करता है । शक्ति बहुत तीव्र रहा करती है । ध्यान समाधिस्थ रहता है । कोई कारण समझमें नहीं आता । यह बात गुप्त रखनेके लिये ही प्रगट करता हूँ। अब इस संबंधमें विशेष फिर लिलूँगा।
१५ ववाणीया, १९४४ श्रावण वदी १३ सोम. बाई आँख संबंधी चमत्कारसे आत्मशक्तिमें थोड़ा फेरफार हुआ है।
१६ ववाणीया, १९४४ आषाढ वदी ४ शुक्र. आप अर्थकी बेदरकारी न रखें । शरीर और आत्मिक-सुखकी इच्छा करके व्ययका कुछ संकोच करेंगे तो मैं समझूगा कि मेरे ऊपर उपकार हुआ।
भवितव्यताका भाव होगा तो मैं अनुकूल समय मिलनेपर आपके सत्संगका लाभ उठा सकूँगा।
१७ ववाणीया, १९४४ श्रावण वदी १४ अमावस्या उपाधि कम है यह आनंदकी बात है । धर्म क्रियाके लिये कुछ वक्त मिलता होगा।
धर्म क्रियाका थोड़ा समय मिलता है । आत्म-सिद्धिका भी थोड़ा समय मिलता है । शाखपठन और अन्य बाँचनका भी थोड़ा समय मिलता है । थोड़ा समय लेखन किया जाता है। थोड़ा