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भीमद राजचन्द्र . [पत्र १३२, १३३, १३४
१३२ ववाणीआ, आसोज मुदी १० गुरु. १९४६ बीजज्ञान
(१) खोज करे तो केवलज्ञान
. भगवान् महावीरदेव. यह कुछ कहे जाने योग्य स्वरूप नहीं ।
ज्ञानी रत्नाकर
ये सब नियतियाँ किसने कहीं ! हमने ज्ञानसे देखकर जैसा योग्य मालूम हुआ वैसी व्याख्या की।
भगवान् महावीरदेव १०, ९, ८, ७, ६, ४, ३, २, १.
. (२) करीब पाँच दिन पहले पत्र मिला था ( वह पत्र जिस पत्रमें लक्ष्मी आदिकी विचित्र दशाका वर्णन किया है)।
जब आत्मा ऐसे अनेक प्रकारके परित्यागी विचारोंको पलट पलटकर एकत्व बुद्धिको पाकर महात्माके संगकी आराधना करेगी, अथवा स्वयं किसी पूर्वके स्मरणको प्राप्त करेगी तो वह इष्ट सिद्धिको पायेगी, इसमें संशय नहीं है।
(३) धर्मध्यान, विद्याभ्यास इत्यादिकी वृद्धि करना ।
१३३ ववाणीआ, वि. सं. १९४६ आसोज यह मैं तुझे मौतकी औषधि देता हूँ। उपयोग करनेमें भूल नहीं करना । तुझे कौन प्रिय है ! मुझे पहिचाननेवाला । ऐसा क्यों करते हो ! अभी देर है। क्या होनेवाला है वह ! हे कर्म | तुझे निश्चित आज्ञा करता हूँ कि नीति और नेकीके ऊपर मेरा पैर नहीं रखवाना ।
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वि. सं. १९४६ आसोज
१३४ तीन प्रकारका वीर्य कहा है:(१) महावीर्य (२) मध्यवीर्य
(३) अल्पवीर्य