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भीमद् राजवन्द्र
[पत्र १७४
रहे थे। इसी कारणसे मुझे भी असंगता बहुत याद आती है, और कभी कभी तो ऐसा हो जाता है कि असंगताके बिना परम दुःख होता है । अनंतकालसे प्राणीको जितना यम दुःखदायक नहीं लगता उससे भी अधिक हमें संग दुःखदायक लगता है। ऐसी बहुतसी अंतर्वृत्तियाँ हैं जो एक ही प्रवाहकी हैं, जो लिखी भी नहीं जाती, और उन्हें लिखे बिना चुप भी रहा नहीं जाता; और आपका वियोग सदा खलता रहता है। कोई सुगम उपाय भी नहीं मिलता । उदयकर्म भोगते हुए दीनता करना उचित नहीं। भविष्यके एक क्षणकी भी चिन्ता नहीं है।
सत् सत् और सत्के साधन स्वरूप आप वहाँ हैं। अधिक क्या कहें ? ईश्वरकी इच्छा ऐसी ही है, और उसे प्रसन्न रक्खे बिना छुटकारा नहीं; नहीं तो ऐसी उपाधियुक्त दशामें न रहें और मनमाना करें । परम............के कारण प्रेमभक्तिमय ही रहें, परन्तु प्रारब्ध कर्म प्रबल है ।
१७४ बम्बई, माघ वदी ३, १९४७ सर्वथा निर्विकार होनेपर भी परब्रह्म प्रेममय पराभक्तिके वश है, यह गुप्त शिक्षा,
जिसने हृदयमें इस बातका अनुभव किया है, ऐसे ज्ञानियोंकी है यहाँ परमानन्द है । असंगवृत्ति होनेसे समुदायमें रहना बहुत कठिन मालूम होता है । जिसका यथार्थ आनन्द किसी भी प्रकारसे नहीं कहा जा सकता, ऐसा सत्स्वरूप जिसके हृदयमें प्रकाशित हुआ है, ऐसे महाभाग्य ज्ञानियोंकी और आपकी हमारे ऊपर कृपा रहेहम तो आपकी चरण-रज हैं; और तीनों कालमें निरंजनदेवसे यही प्रार्थना है कि ऐसा ही प्रेम बना रहे।
आज प्रभातसे निरंजनदेवका कोई अद्भुत अनुग्रह प्रकाशित हुआ है । आज बहुत दिनसे इच्छित पराभक्ति किसी अनुपमरूपमें उदित हुई है। श्रीभागवतमें एक कथा है कि गोपियाँ भगवान् वासुदेव (कृष्णचन्द्र) को मक्खनकी मटकीमें रखकर बेचनेके लिये निकली थीं; वह प्रसंग आज बहुत याद आ रहा है । जहाँ अमृत प्रवाहित होता है, वही सहस्रदल-कमल है, और वही यह मक्खनकी मटकी है; और जो आदिपुरुष उसमें विराजमान हैं, वे ही यहाँ भगवान् वासुदेव हैं । सतपुरुषकी चित्तवृत्तिरूपी गोपीको उसकी प्राप्ति होनेपर वह गोपी उल्लासमें आकर दूसरी किन्हीं मुमुक्षु आत्माओंसे कहती है कि कोई माधव लो, हॉरे कोई माधव लो'–अर्थात् वह वृत्ति कहती है कि हमें आदिपुरुषकी प्राप्ति हो गई है, और बस यह एक ही प्राप्त करनेके योग्य है, दूसरा कुछ भी प्राप्त करनेके योग्य नहीं; इसलिये तुम इसे प्राप्त करो । उल्लासमें वह फिर फिर कहती जाती है कि तुम उस पुराणपुरुषको प्राप्त करो, और यदि उस प्राप्तिकी इच्छा अचल प्रेमसे करते हो तो हम तुम्हें इस आदिपुरुषको दे दें। हम इसे मटकीमें रखकर बेचने निकली हैं, योग्य ग्राहक देखकर ही देती हैं। कोई प्राहक बनो, अचल प्रेमसे कोई ग्राहक बनो, तो हम वासुदेवकी प्राप्ति करा दें। ____ मटकीमें रखकर बेचनेको निकलनेका गूढ़ आशय यह है कि हमें सहस्रदल-कमलमें वासुदेवभगवान् मिल गये हैं । मक्खनका केवल नाममात्र ही है । यदि समस्त सृष्टिको मथकर मक्खन निकालें तो केवल एक अमृतरूपी वासुदेवभगवान् ही निकलते हैं । इस कथाका असली सूक्ष्म स्वरूप