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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र १७२, १७१ जो कोई दूसरे भी तुम्हारे सहवासी (श्रावक आदि) धर्म-क्रियाके नामसे क्रिया करते हों, उसका निषेध नहीं करना। जिसने हालमें उपाधिरूप इच्छा स्वीकार की है ऐसे उस पुरुषको भी किसी प्रकारसे प्रगट न करना । ऐसी धर्म-कथा किसी दृढ़ जिज्ञासुसे ही थोड़े शब्दोंमें करना ( वह भी यदि वह इच्छा रखता हो तो ), जिससे उसका लक्ष मार्गकी ओर फिरे । बाकी हालमें तो तुम सब अपनी सफलताके लिये ही मिथ्या धर्म-वासनाओंका, विषय आदिकी प्रियताका, और प्रतिबंधका त्याग करना सीखो। जो कुछ प्रिय करने योग्य है, उसे जीवने कभी नहीं जाना; और बाकी कुछ भी प्रिय करने योग्य है नहीं, यह हमारा निश्चय है। योग्यताके लिये ब्रह्मचर्य महान् साधन है, और असत्संग महान् विघ्न है ।
१७२ बम्बई, माघ सुदी ११ गुरु. १९४७ उपाधि-योगके कारण यदि शास्त्र-वाचन न हो सकता हो तो अभी उसे रहने देना, परन्तु उपाधिसे नित्य थोड़ा भी अवकाश लेकर जिससे चित्तवृत्ति स्थिर हो, ऐसी निवृत्तिमें बैठनेकी बहुत आवश्यकता है, और उपाधि में भी निवृत्तिके लक्ष रखनेका ध्यान रखना।
जितना आयुका समय है उस संपूर्ण समयको यदि जीव उपाधियोंमें लगाये रक्खे तो मनुष्यत्वका सफल होना कैसे संभव हो सकता है ! मनुष्यत्वकी सफलताके लिये ही जीना कल्याणकारक है, ऐसा निश्चय करना चाहिये । तथा उस सफलताके लिये जिन जिन साधनोंकी प्राप्ति करना योग्य है, उन्हें प्राप्त करनेके लिये नित्य ही निवृत्ति प्राप्त करनी चाहिये । निवृत्तिका अभ्यास किये बिना जीवकी प्रवृत्ति दूर नहीं हो सकती, यह एक ऐसी बात है जो प्रत्यक्ष समझमें आ जाती है। ___जीवका बंधन धर्मके रूपमें मिथ्या वासनाओंके सेवन करनेसे हुआ है; इस महालक्षको रखते हुए ऐसी मिथ्या वासनाएं किस तरह दूर हों, इसका विचार करनेका प्रयत्न चालू रखना।
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बम्बई, माघ सुदी १९४७
वचनावली १. जीव अपने आपको भूल गया है, और इसी कारण उसका सत्सुखसे वियोग हुआ है, ऐसा सब धर्मों में माना है।
२. ज्ञान मिलनेसे ही अपने आपको भूलजानेरूपी अज्ञानका नाश होता है, ऐसा सन्देहरहित मानना।
३. उस ज्ञानकी प्राप्ति ज्ञानीके पाससे ही होनी चाहिये; यह स्वाभाविकरूपसे समझमें आनेवाली बात है; तो भी जीव लोक-लज्जा आदि कारणोंसे अज्ञानीका आश्रय नहीं छोड़ता, यही अनंतानुबंधी कषायका मूल है।
१. जो ज्ञानकी प्राप्तिकी इच्छा करता है उसे ज्ञानीकी इच्छानुसार चलना चाहिये, ऐसा जिनागम आदि सभी शास्त्र कहते हैं। अपनी इच्छासे चलते हुए जीप अनादिकालसे भटक या है।