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पत्र २०६, २०७, २०८, २०९] विविध पत्र आदि संग्रह-२४वाँ वर्ष
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बम्बई, चैत्र १९४७ सुदृढ़ स्वभावसे आत्मार्थका प्रयत्न करना । आत्म-कल्याण प्राप्त करनेमें प्रायः प्रबल परिषहोंके बारम्बार आनेकी संभावना है, परन्तु यदि उन परिषहोंको शांत चित्तसे सह लिया जाय तो दीर्घकालमें हो सकने योग्य कल्याण बहुत अल्पकालमें ही सिद्ध हो जाता है।
तुम सब ऐसे शुद्ध आचरणसे रहना कि जिससे तुमको काल बीतनेपर, विषम दृष्टिसे देखनेवाले मनुष्योंमेंसे बहुतोंको, अपनी उस दृष्टिपर पश्चात्ताप करनेका समय आये।
धैर्य रखकर आत्म-कल्याणमें निर्भय रहना । निराश न होना । आत्मार्थमें प्रयत्न करते रहना।
२०७ बम्बई, वैशाख सुदी ७ शुक्र. १९४७ परब्रह्म आनंदमूर्ति है। हम उसका तीनों कालोंमें अनुग्रह चाहते हैं कुछ निवृत्तिका समय मिला करता है । परब्रह्म-विचार तो ज्योंका त्यों रहा ही करता है। कभी कभी तो उसके लिये आनन्दकी किरणें बहुत बहुत स्फुरित होने लगती हैं और कुछकी कुछ (अभेद ) बात समझमें आती है। परन्तु वह ऐसी है जो किसीसे कही नहीं जा सकती; हमारी यह वेदना अथाह है । वेदनाके समय कोई न कोई साता पूँछनेवाला चाहिये, ऐसा व्यावहारिक मार्ग है; परन्तु हमें इस परमार्थ-मार्गमें साता पूँछनेवाला कोई नहीं मिलता; और जो है भी उसका वियोग रहता है ।
२०० . बम्बई, वैशाख वदी ३,१९४७ विरहको भी सुखदायक मानना ।
जैसे हरिके प्रति विरहाग्निको जलानेसे उसकी साक्षात् प्राप्ति होती है, वैसे ही संतके विरहानुभवसे साक्षात् उसकी प्राप्ति होती है। ईश्वरेच्छासे अपने संबंधमें भी ऐसा ही समझना ।
पूर्णकाम हरिका स्वरूप है। उसमें जिसकी निरन्तर लौ लगी रहती है, ऐसे पुरुषोंसे भारत क्षेत्र प्रायः शून्य जैसा हो गया है; माया-मोह ही सर्वत्र दिखाई देता है। मुमुक्षु क्वचित् ही दिखाई देते हैं;
और उसमें भी मतांतर आदिके कारणोंसे ऐसे मुमुक्षुओंको भी योगका मिलना अति कठिन हो गया है। आप जो हमें बारम्बार प्रेरित करते होउसके लिये हमारी जैसी चाहिये वैसी योग्यता नहीं है;
और जबतक हरिने साक्षात् दर्शन देकर उस बातकी प्रेरणा नहीं की, तबतक उस विषयमें मेरी कोई इच्छा नहीं होती, और होगी भी नहीं ।
२०९ बम्बई, वैशाख वदी ८ रवि. १९४७ हरिके प्रतापसे जब हरिका स्वरूप मिलगा तब समझाऊँगा चित्तकी दशा चैतन्यमय रहा करती है। इस कारण हमारे व्यवहारके सब काम प्रायः अन्यवस्थासे ही होते हैं । हरि-इच्छाको सुखदायक मानते हैं, इसलिये जो उपाधि-योग रहता है उसे भी हम समाधि-योग मानते हैं।
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