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श्रीमद् राजचन्द्र
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नाना प्रकार के नय, नाना प्रकार के प्रमाण, नाना प्रकारके भंगजाल, और नाना प्रकारके अनुयोग ये सब लक्षणारूप ही हैं; लक्ष तो केवल एक सच्चिदानन्द है ।
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[ पत्र १८१, १८२
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बम्बई, माघ वदी १३, १९४७
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'सत् ' कुछ दूर नहीं है, परन्तु दूर लगता है; और यही जीवका मोह है । ' सत् ' जो कुछ है, वह ' सत् ही ' है, वह सरल है, सुगम है; और उसकी सर्वत्र प्राप्ति हो सकती है; परन्तु जिसको भ्रांतिरूप आवरण- तम छाया हुआ है उस प्राणीको उसकी प्राप्ति कैसे हो सकती है ? अंधकारके चाहे कितने भी भेद क्यों न करें किन्तु उनमें कोई ऐसा भेद नहीं आ सकता जो उजाला हो । जिसे आवरण- तिमिर व्याप्त है ऐसे प्राणीकी कल्पनामेंकी कोई भी कल्पना 'सत् ' मालूम नहीं होती; और वह प्राणी ' सत् ' के पासतक भी आ सके यह संभव नहीं है । जो ' सत् ' है वह भ्रांति नहीं है, वह भ्रांतिसे सर्वथा व्यतिरिक्त (जुदा ) है; कल्पनासे ' पर ' ( दूर ) है; इसलिये जिसने उसको प्राप्त करनेका दृढ़ निश्चय किया है, उसे ' वह स्वयं कुछ भी नहीं जानता,' ऐसा पहिले दृढ़ निश्चययुक्त विचार करना चाहिये, और बादमें ' सत्' की प्राप्तिके लिये ज्ञानी की शरण में जाना चाहिये; ऐसा करनेसे अवश्य ही मार्गकी प्राप्ति होती है ।
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ये जो वचन लिखे हैं, वे सब मुमुक्षुओंको परमबन्धुके समान हैं, परमरक्षकके समान हैं, और उन्हें सम्यक् प्रकारसे विचार करनेपर ये परमपदको देनेवाले हैं । इनमें निर्ग्रन्थ प्रवचनकी समस्त द्वादशांगी, षट्दर्शनका सर्वोत्तम तत्त्व, और ज्ञानीके उपदेशका बीज संक्षेपसे कह दिया है; इसलिये फिर फिरसे उनकी सँभाल करना, विचारना, समझना, समझनेका प्रयत्न करना; इनको बाधा पहुँचानेवाले दूसरे प्रकारोंसे उदासीन रहना; और इन्हींमें ही वृत्तिका लय करना; तुम्हें और अन्य किसी भी मुमुक्षुको गुप्त रीतिसे कहने का हमारा यही एक मंत्र है। इसमें ' सत्' ही कहा है, यह समझनेके लिये अधिक से अधिक समय अवश्य लगाना ।
बम्बई, माघ वदी १३, १९४७
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सत्स्वरूपको अभेदभावसे नमोनमः
क्या लिखें ? वह तो कुछ सूझता भी नहीं; क्योंकि दशा कुछ जुदी ही रहती है; फिर भी प्रसंग पाकर कोई सद्वृत्ति देनेवाली पुस्तक होगी तो भेजूँगा ।
हमारे ऊपर तुम्हारी चाहे जैसी भी भक्ति क्यों न हों, तो भी बाकीके सत्र जीवोंके और विशेष करके धर्म- जीवोंके तो हम तीनों कालमें दास ही हैं। हालमें तो सबको इतना ही करना चाहिये कि पुराना छोड़े बिना तो छुटकारा ही नहीं; और यह छोड़ने योग्य ही है, यह भावना दृढ़ करना । मार्ग सरल है; पर प्राप्ति दुर्लभ है ।