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१३९, १४०, १४१]
विविध पत्र आदि संग्रह-२३वाँ वर्ष
२१३
मोरवी, आसोज १९४६
१३९ जहाँ उपयोग है वहाँ धर्म है।
__ महावीरदेवको नमस्कार. १. अन्तिम निर्णय होना चाहिए । २. सब प्रकारका निर्णय तत्वज्ञानमें है । ३. आहार, विहार और निहारकी नियमितता । ४. अर्थकी सिद्धि ।
आर्यजीवन उत्तम पुरुषोंने आचरण किया है।
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बम्बई, वि. सं. १९४६
नित्यस्मृति १. जिस महाकार्यके लिये तू पैदा हुआ है उस महाकार्यका बारंबार चिन्तवन कर ।
२. ध्यान धर ले; समाधिस्थ हो जा। .. ३. व्यवहार-कार्यको विचार जा । उसमें जिस कार्यका प्रमाद हुआ है, अब उसके लिये प्रमाद न हो, ऐसा कर । जिस कार्यमें साहस हुआ हो, अब उसमें वैसा न हो ऐसा उपदेश ले।
४. तुम दृढ़ योगी हो, वैसे ही रहो। ५. कोई भी छोटीसे छोटी भूल तेरी स्मृतिमेसे नहीं जाती, यह महाकल्याणकी बात है। ६. किसीमें भी लिप्त न होना। ७. महागंभीर बन । ८. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावको विचार जा । ९. यथार्थ कर। १०. कार्य-सिद्धि करता हुआ चला जा ।
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बम्बई, वि. सं. १९४६ सहजप्रकृति १. पर-हितको ही निज-हित समझना, और परदुःखको ही अपना दुःख समझना । २. सुख-दुःख ये दोनों ही मनकी मात्र कल्पनायें हैं। ३. क्षमा ही मोक्षका भव्यद्वार है। १. सबके साथ नम्रभावसे रहना ही सच्चा भूषण है। ५. शांत स्वभाव ही सज्जनताका यथार्थ मूल है ।