________________
पत्र ३३]
विविध पत्र आदि संग्रह-२१वाँ वर्ष दिये हैं । इस मार्गके लिये वे क्रियाएँ और उपदेश ग्रहण किये जॉय तो वे सफल हैं, और यदि इस मार्गको भूलकर वे क्रियाएँ और वे उपदेश ग्रहण किये जाँय तो वे सब निष्फल ही हैं।
श्रीमहावीर जिस मार्गसे पार हुए उसी मार्गसे श्रीकृष्ण भी पार होंगे । जिस मार्गसे श्रीकृष्ण पार होंगे उसी मार्गसे श्रीमहावीर पार हुए हैं । यह मार्ग चाहे जहाँ बैठकर, चाहे जिस कालमें, चाहे जिस श्रेणीमें, चाहे जिस योगमें, जब कभी मिलेगा तभी उस पवित्र और शाश्वत सत्पदके अनंत अतीन्द्रिय सुखका अनुभव होगा। वह मार्ग सब स्थलोंमें संभव है। योग्य सामग्रीके न मिलनेसे भन्यजन भी इस मार्गको पानेसे रुके हुए हैं, रुकेंगे और रुके थे। किसी भी धर्मसंबंधी मतभेदको छोड़कर एकाप्रभाव और सम्यग्योगसे इसी मार्गकी खोज करनी चाहिये । विशेष क्या कहें ? वह मार्ग स्वयं आत्मामें ही मौजूद है। जब आत्मत्वको पाने योग्य पुरुष अर्थात् निग्रंथ-आत्मा आत्मत्वकी योग्यता समझकर उस आत्मत्वका अर्पण करेगा-उसका उदय करेगा-तभी वह उसको प्राप्त होगी, तभी वह मार्ग मिलेगा, तभी वे मतभेद आदि दूर होंगे। मतभेद रखकर किसीने भी मोक्ष नहीं पाया । जिसने विचारकर मतभेदको दूर किया उसीने अंतर्वृत्ति पाकर क्रमसे शाश्वत मोक्षको पाया है, पाता है, और पावेगा।
३३ ववाणीआ, फाल्गुन सुदी ९ रवि. १९४५ निरागी महात्माओंको नमस्कार कर्म यह जड़ वस्तु है । ऐसा अनुभव होता है कि जिस जिस आत्माको इस जड़से जितना जितना अधिक आत्मबुद्धिपूर्वक समागम होता है उस आत्माको उतनी उतनी ही अधिक जड़ताकी अर्थात् अज्ञानताकी प्राप्ति होती है । आश्चर्यकी बात तो यह है कि कर्म स्वयं जड़ होनेपर भी चेतनको अचेतन मना रहा है। चेतन चेतन-भावको भूलकर उसको निजस्वरूप ही मान रहा है । जो पुरुष उस कर्म-संयोगको और उसके उदयसे उत्पन्न हुई पर्यायोंको निजस्वरूप नहीं मानते और जो सत्तामें रहनेवाले पूर्व संयोगोंको बंधरहित परिणामसे भोग रहे हैं, वे पुरुष स्वभावकी उत्तरोत्तर ऊर्ध्वश्रेणीको पाकर शुद्ध चेतन-भावको पावेंगे, ऐसा कहना सप्रमाण है; क्योंकि भूतकालमें ऐसा ही हुआ है, वर्तमानकालमें ऐसा ही हो रहा है, और भविष्यकालमें ऐसा ही होगा । जो कोई भी आत्मा उदयमें आनेवाले कर्मको भोगते हुए समता-श्रेणीमें प्रवेश करके अबंध-परिणामसे आचरण करेगी तो वह निश्चयसे चेतन-शुद्धिको प्राप्त करेगी।
____ यदि आत्मा विनयी (होकर ) सरल और लघुत्वभावको पाकर सदैव सत्पुरुषके चरणकमलमें रहे तो जिन महात्माओंको नमस्कार किया गया है, उन महात्माओंकी जैसी ऋद्धि है, वैसी ऋद्धि प्राप्त की जा सकती है।
या तो अनंतकालमें सत्पात्रता ही नहीं हुई, अथवा सत्पुरुष ( जिसमें सद्गुरुत्व, सत्संग और सत्कथा गर्मित हैं ) नहीं मिले; नहीं तो निश्चयसे मोक्ष हथेलीमें ही है।