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पत्र १२] विविध पत्र आदि संग्रह-१९वाँ वर्ष
१३१ परोपकार करते हुए भी यदि कदाचित् लक्ष्मी अंधापन, बहरापन, गूंगापन प्रदान कर दे तो उसकी भी परवा नहीं।
अपना जो परस्परका संबंध है वह कुछ रिश्तेदारीका नहीं, परन्तु हृदय-सम्मिलनका है । यद्यपि ऐसा प्रकट ही है कि उनमें परस्पर लोहे और चुम्बकका सा गुण प्राप्त हुआ है, तो भी मैं इससे भी भिन्नरूपसे आपको हृदयरूप करना चाहता हूँ । सब प्रकारके संबंधीपनेको और संसार-योजनाको दूर करके ये विचार मुझे तत्त्वविज्ञानरूपसे बताने हैं, और उन्हें आपको स्वयं अनुकरण करना है । इतनी बात बहुत सुखप्रद होनेपर मार्मिकरूपसे आत्मस्वरूपके विचारपूर्वक यहाँ लिखता हूँ।
क्या उनके हृदयमें ऐसी सुन्दर योजना है कि वे शुभ प्रसंगमें सद्विवेकी और रूदीसे प्रतिकूल रह सकते हैं जिससे परस्पर कुटुम्बरूपसे स्नेह उत्पन्न हो सके ! क्या आप ऐसी योजनाको करेंगे ! क्या कोई दूसरा ऐसा करेगा ? यह विचार पुनः पुनः हृदयमें आया करता है । इसीलिये साधारण विवेकी जिस विचारको हवाई समझते हैं, तथा जिस वस्तु और जिस पदकी प्राप्ति आज राज्यश्री चक्रवर्ती विक्टोरियाको भी दुर्लभ और सर्वथा असंभव है, उन विचारोंकी, उस वस्तुकी और उस पदकी ओर सम्पूर्ण इच्छा होनेके कारण यह लिखा है । यदि इससे कुछ लेशमात्र भी प्रतिकूल हो तो उस पदाभिलाषी पुरुषके चरित्रको बड़ा कलंक लगता है । इन सब (इस समय लगनेवाले ) हवाई विचारोंको मैं केवल आपसे ही कहता हूँ।
अंतःकरण शुक्ल अद्भुत विचारोंसे भरपूर है । परन्तु आप वहाँ रहे या मैं यहाँ रहूँ, एक ही बात है!