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श्रीमद् राजचन्द्र
[कपिलमुनि कुछ अभ्यास नहीं कर सकता था। पंडितजीने अभ्यास न करनेका कारण पूछा, तो कपिलने सब कह दिया । पंडितजी कपिलको एक गृहस्थके पास ले गये। उस गृहस्थने कपिलपर अनुकंपा करके एक विधवा ब्राह्मणीके घर इसे हमेशा भोजन मिलते रहनेकी व्यवस्था कर दी । उससे कपिलकी एक चिन्ता कम हुई।
४७ कपिलमुनि
(२) जहाँ एक छोटी चिंता कम हुई, वहाँ दूसरी बड़ी जंजाल खड़ी हो गई। भोला कपिल अब युवा हो गया था, और जिस विधवाके घर वह भोजन करने जाता था वह विधवा बाई भी युवती थी। विधवाके साथ उसके घरमें दूसरा कोई आदमी न था । हमेशकी परस्परकी बातचीतसे दोनोंमें संबंध बढ़ा, और बढ़कर हास्य विनोदरूपमें परिणत हो गया। इस प्रकार होते होते दोनोंमें गाद प्रीति बंधी । कपिल उसमें लुब्ध हो गया ! एकांत बहुत अनिष्ट चीज है !
___ कपिल विद्या प्राप्त करना भूल गया । गृहस्थकी तरफसे मिलने वाले सीदेसे दोनोंका मुश्किलसे निर्वाह होता था; कपड़े लत्तेकी भी बाधा होने लगी । कपिल गृहस्थाश्रम जैसा बना बैठे थे । कुछ भी हो, फिर भी लघुकर्मी जीव होनेसे कपिलको संसारके विशेष प्रपंचकी खबर भी न थी । इसलिये पैसा कैसे पैदा करना इस बातको वह बिचारा जानता भी न था । चंचल स्त्रीने उसे रास्ता बताया कि घबड़ानेसे कुछ न होगा, उपायसे सिद्धि होती है। इस गाँवके राजाका ऐसा नियम है, कि सबेरे सबसे पहले जाकर जो ब्राह्मण उसे आशीर्वाद दे, उसे दो माशे सोना मिलेगा । यदि तुम वहाँ जा सको और पहले आशीर्वाद दे सको तो यह दो मासा सोना मिल सकता है । कपिलने इस बातको स्वीकार की । कपिलने आठ दिनतक धक्के खाये परन्तु समय बीत जानेपर पहुँचनेसे उसे कुछ सफलता न मिलती थी । एक दिन उसने ऐसा निश्चय किया, कि यदि मैं चौकमें सोऊँ तो चिन्ताके कारण उठ बैलूंगा। वह चौकमें सोया । आधी रात बीतनेपर चन्द्रका उदय हुआ । कपिल प्रभात समीप जान मुट्ठी बाँधकर आशीर्वाद देनेके लिये दौड़ते हुए जाने लगा । रक्षपालने उसे चोर जानकर पकड़ लिया। लेनेके देने पड़ गये । प्रभात हुआ, रक्षपालने कपिलको ले जाकर राजाके समक्ष खड़ा किया । कपिल बेसध जैसा खड़ा रहा । राजाको उसमें चोरके लक्षण दिखाई नहीं दिये । इसलिये राजाने सब वृत्तांत पूछा । चंद्रके प्रकाशको सूर्यके समान गिननेवालेके भोलेपनपर राजाको दया आई । उसकी दरिद्रताको दूर करनेकी राजाकी इच्छा हुई इसलिये उसने कपिलसे कहा कि यदि आशीर्वादके कारण तुझे इतनी अधिक झंझट करनी पड़ी है तो अब तू अपनी इच्छानुसार माँग ले । मैं तुझे दूंगा। कपिल थोड़ी देर तक मूढ़ जैसा हो गया। इससे राजाने कहा, क्यों विप्र ! माँगते क्यों नहीं ! कपिलने उत्तर दिया, मेरा मन अभी स्थिर नहीं हुआ, इसलिये क्या माँगू यह नहीं सूझता । राजाने सामनेके बागमें जाकर वहाँ बैठकर स्वस्थतापूर्वक विचार करके कपिलको माँगनेके लिये कहा । कपिल बागमें जाकर विचार करने बैठा।