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श्रीमद् राजचन्द्र
[स्मृतिमें रखने योग्य महावाक्य
उद्धार करो और उद्धार करनेके लिये तत्त्वज्ञानका प्रकाश करो; तथा सत्शीलका सेवन करो। इसे प्राप्त करनेके लिये जो जो मार्ग बताये गये हैं वे सब मनोनिग्रहताके आधीन हैं । मनोनिग्रहता होनेके लिये लक्षकी बहुलता करना जरूरी है । बहुलता करनेमें निम्नलिखित दोष विघ्नरूप होते हैं:१ आलस्य.
१० अपनी बड़ाई. २ अनियमित निद्रा.
११ तुच्छ वस्तुसे आनन्द ३ विशेष आहार.
१२ रसगारवलुब्धता. ४ उन्माद प्रकृति.
१३ अतिभोग. ५ मायाप्रपंच.
१४ दूसरेका अनिष्ट चाहना. ६ अनियमित काम.
१५ कारण विना संचय करना. ७ अकरणीय विलास.
१६ बहुतोंका स्नेह. ८ मान.
१७ अयोग्य स्थलमें जाना. ९ मर्यादासे अधिक काम.
१८ एक भी उत्तम नियमका नहीं पालना. जबतक इन अठारह विघ्नोंसे मनका संबंध है तबतक अठारह पापके स्थान क्षय नहीं होंगे । इन अठारह दोषोंके नष्ट होनेसे मनोनिग्रहता और अभीष्ट सिद्धि हो सकती है । जबतक इन दोषोंकी मनसे निकटता है तबतक कोई भी मनुष्य आत्म-सिद्धि नहीं कर सकता । अति भोगके बदलेमें केवल सामान्य भोग ही नहीं, परन्तु जिसने सर्वथा भोग-त्याग व्रतको धारण किया है, तथा जिसके हृदयमें इनमेंसे किसी भी दोषका मूल न हो वह सत्पुरुष महान् भाग्यशाली है।
१.१ स्मृतिमें रखने योग्य महावाक्य १ नियम एक तरहसे इस जगत्का प्रवर्तक है। २ जो मनुष्य सत्पुरुषोंके चरित्रके रहस्यको पाता है वह परमेश्वर हो जाता है। ३ चंचल चित्त सब विषम दुःखोंका मूल है। ४ बहुतोंका मिलाप और थोड़ोंके साथ अति समागम ये दोनों समान दुःखदायक हैं। ५ समस्वभावीके मिलनेको ज्ञानी लोग एकांत कहते हैं ।
६ इन्द्रियाँ तुम्हें जीतें और तुम सुख मानो इसकी अपेक्षा तुम इन्द्रियोंके जीतनेसे ही सुख, आनन्द और परमपद प्राप्त करोगे।
७ राग विना संसार नहीं और संसार विना राग नहीं । ८ युवावस्थाका सर्व संगका परित्याग परमपदको देता है। ९ उस वस्तुके विचारमें पहुँचो कि जो वस्तु अतीन्द्रियस्वरूप है । १० गुणियोंके गुणोंमें अनुरक्त होओ।
१०२ विविध प्रश्न
(१) आज तुम्हें मैं बहुतसे प्रश्नोंको निम्रन्थ प्रवचनके अनुसार उत्तर देनेके लिये पूँछता हूँ।
प्र. कहिये धर्मकी क्यों आवश्यकता है !