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[ तत्त्वावबोध
श्रीमद् राजचन्द्र ८२ तत्त्वावबोध
दशकालिक सूत्रमें कथन है कि जिसने जीवाजीवके भावोंको नहीं जाना वह अबुध संयममें कैसे स्थिर रह सकता है ? इस वचनामृतका तत्पर्य यह है कि तुम आत्मा अनात्माके स्वरूपको जानो, इसके जाननेकी अत्यंत आवश्यकता है।
आत्मा अनात्माका सत्य स्वरूप निम्रन्थ प्रवचनमेंसे ही प्राप्त हो सकता है । अनेक अन्य मतोंमें इन दो तत्त्वोंके विषयमें विचार प्रगट किये गये हैं, परन्तु वे यथार्थ नहीं हैं । महाप्रज्ञावान आचार्योद्वारा किये गये विवेचन सहित प्रकारांतरसे कहे हुए मुख्य नौ तत्त्वोंको जो विवेक बुद्धिसे जानता है, वह सत्पुरुष आत्माके स्वरूपको पहचान सकता है।
स्याद्वादकी शैली अनुपम और अनंत भाव-भेदोंसे भरी है । इस शैलीको पूरिपूर्णरूपसे तो सर्वज्ञ और सर्वदर्शी ही जान सकते हैं, फिर भी इनके वचनामृतके अनुसार आगमकी मददसे बुद्धिके अनुसार नौ तत्त्वका स्वरूप जानना आवश्यक है । इन नौ तत्त्वोंको प्रिय श्रद्धा भावसे जाननेसे परम विवेक-बुद्धि, शुद्ध सम्यक्त्व और प्रभाविक आत्म-ज्ञानका उदय होता है । नौ तत्त्वोंमें लोकालोकका सम्पूर्ण स्वरूप आ जाता है । जितनी जिसकी बुद्धिकी गति है, उतनी वे तत्त्वज्ञानकी ओर दृष्टि पहुँचाते हैं, और भावके अनुसार उनकी आत्माकी उज्ज्वलता होती है। इससे वे आत्म-ज्ञानके निर्मल रसका अनुभव करते हैं । जिनका तत्त्वज्ञान उत्तम और सूक्ष्म है, तथा जो सुशीलयुक्त तत्त्वज्ञानका सेवन करते हैं वे पुरुष महान् भाग्यशाली हैं।
इन नौ तत्त्वोंके नाम पहिलेके शिक्षापाठमें मैं कह गया हूँ । इनका विशेष स्वरूप प्रज्ञावान् आचार्योंके महान् ग्रंथोंसे अवश्य जानना चाहिये; क्योंकि सिद्धांतमें जो जो कहा है उन सबके विशेष भेदोंसे समझनेमें प्रज्ञावान् आचार्यों द्वारा विरचित ग्रंथ सहायभूत हैं । ये गुरुगम्य भी हैं । नय, निक्षेप और प्रमाणके भेद नवतत्त्वके ज्ञानमें आवश्यक हैं, और उनका यथार्थज्ञान इन प्रज्ञावंतोंने बताया है।
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सर्वज्ञ भगवान्ने लोकालोकके सम्पूर्ण भावोंको जाना और देखा और उनका उपदेश उन्होंने भव्य लोगोंको दिया। भगवान्ने अनंत ज्ञानके द्वारा लोकालोकके स्वरूपविषयक अनंत भेद जाने थे; परन्तु सामान्य मनुष्योंको उपदेशके द्वारा श्रेणी चढ़नेके लिए उन्होंने मुख्य नव पदार्थको बताया। इससे लोकालोकके सब भावोंका इसमें समावेश हो जाता है। निर्ग्रन्थ प्रवचनका जो जो सूक्ष्म उपदेश है वह तत्त्वकी दृष्टिसे नवतत्त्वमें समाविष्ट हो जाता है । तथा सम्पूर्ण धर्ममतोंका सूक्ष्म विचार इस नवतत्त्वविज्ञानके एक देशमें आ जाता है । आत्माकी जो अनंत शक्तियों की हुई हैं उन्हें प्रकाशित करनेके लिये अहंत भगवान्का पवित्र उपदेश है। ये अनंत शक्तियों उस समय प्रफुल्लित हो सकती हैं जब कि नवतत्त्व-विज्ञानका पारावार ज्ञानी हो जाय। :