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बत्तीस योग]
मोसमाला
अन्न आदिकी न्यूनाधिकतासे जो रोग प्रत्येक कायामें प्रकट होते हैं, मलमूत्र, विष्ठा, हाड, माँस, राद और श्लेष्मसे जिसकी ढाँचा टिका हुआ है, केवल त्वचासे जिसकी मनोहरता है, उस कायाका मोह सचमुच विभ्रम ही है। सनत्कुमारने जिसका लेशमात्र भी मान किया, वह भी उससे सहन नहीं हुआ, उस कायामें अहो पामर ! तू क्या मोह करता है ! यह मोह मंगलदायक नहीं।
७२ बत्तीस योग सत्पुरुषोंने नीचेके बत्तीस योगोंका संग्रहकर आत्माको उज्ज्वलको बनानेका उपदेश दिया है:
१ मोक्षसाधक योगके लिये शिष्यको आचार्यके प्रति आलोचना करनी । २ आचार्यको आलोचनाको दूसरेसे प्रगट नहीं करनी । ३ आपत्तिकालमें भी धर्मकी दृढ़ता नहीं छोड़नी । ४ इस लोक और परलोकके सुखके फलकी वांछा विना तप करना । ५ शिक्षाके अनुसार यतनासे आचरण करना और नयी शिक्षाको विवेकसे ग्रहण करना। ६ ममत्वका त्याग करना । ७ गुप्त तप करना। ८ निर्लोभता रखनी । ९ परीषहके उपसर्गको जीतना। १० सरल चित्त रखना । ११ आत्मसंयम शुद्ध पालना । १२ सम्यक्त्व शुद्ध रखना। १३ चित्तकी एकाग्र समाधि रखनी। १४ कपट रहित आचारका पालना । १५ विनय करने योग्य पुरुषोंकी यथायोग्य विनय करनी । १६ संतोषके द्वारा तृष्णाकी मर्यादा कम करना। १७ वैराग्य भावनामें निमग्न रहना । १८ माया रहित व्यवहार करना । १९ शुद्ध क्रियामें सावधान होना। २० संवरको धारण करना और पापको रोकना। २१ अपने दोषोंको समभावपूर्वक दूर करना । २२ सब प्रकारके विषयोंसे विरक्त रहना। २३ मूलगुणोंमें पाँच महाव्रतोंको विशुद्ध पालना । २४ उत्तरगुणोंमें पाँच महाव्रतोंको विशुद्ध पालना । २५ उत्साहपूर्वक कायोत्सर्ग करना । २६ प्रमाद रहित ज्ञान ध्यानमें लगे रहना ।