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अनुपूर्वी ]
मोक्षमाला
कारणसे पूजने योग्य हैं, ऐसा विचारनेसे इनके स्वरूप, गुण इत्यादिका विचार करनेकी सत्पुरुषको तो सच्ची आवश्यकता है । अब कहो कि यह मंत्र कितना कल्याणकारक है।
प्रश्नकार-सत्पुरुष नमस्कारमंत्रको मोक्षका कारण कहते हैं, यह इस व्याख्यानसे मैं भी मान्य रखता हूँ।
अहंत भगवान्, सिद्ध भगवान् , आचार्य, उपाध्याय और साधु इनका एक एक प्रथम अक्षर लेनेसे " असिआउसा" यह महान् वाक्य बनता है। जिसका ॐ ऐसा योगबिंदुका स्वरूप होता है । इस लिये हमें इस मंत्रकी विमल भावसे जाप करनी चाहिये ।
३६ अनुपूर्वी नरकानुपूर्वी, तिर्यंचानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी और देवानुपूर्वी इन अनुपूर्वियोंके विषयका यह पाठ नहीं है, परन्तु यह ' अनुपूर्वी ' नामकी एक अवधान संबंधी लघु पुस्तकके मंत्र स्मरणके लिये है।
पिता-इस तरहकी कोष्ठकसे भरी हुई एक छोटीसी पुस्तक है, क्या उसे तूने देखी है ! पुत्र-हाँ, पिताजी। पिना-इसमें उलटे सीधे अंक रक्खे हैं, उसका कुछ कारण तेरी समझमें आया है ! पुत्र-नहीं पिताजी ! मेरी समझमें नहीं आया, इसलिये आप उस कारणको कहिये ।
पिता-पुत्र ! यह प्रत्यक्ष है कि मन एक बहुत चंचल चीज है। इसे एकाग्र करना बहुत ही अधिक विकट है । वह जब तक एकाग्र नहीं होता, तब तक आत्माकी मलिनता नहीं जाती, और पापके विचार कम नहीं होते । इस एकाग्रताके लिये भगवान्ने बारह प्रतिज्ञा आदि अनेक महान् साधनोंको कहा है। मनकी एकाग्रतासे महायोगकी श्रेणी चढ़नेके लिये और उसे बहुत प्रकारसे निर्मल करनेके लिये सत्पुरुषोंने यह एक साधनरूप कोष्ठक बनाई है । इसमें पहले पंचपरमेष्ठीमंत्रके पाँच अंकोंको रक्खा है, और पीछे लोम-विलोम स्वरूपसे इस मंत्रके इन पाँच अंकोंको लक्षबद्ध रखकर भिन्न भिन्न प्रकारसे कोष्ठकें बनाई है। ऐसे करनेका कारण भी यही है, कि जिससे मनकी एकाग्रता होकर निर्जरा हो सकें।