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महापुराणे उत्तरपुराणम्
स्रग्धरा सयो जातं जिनेन्द्र स्वरवतरणसम्प्राप्तकल्याणकार्ये
वामं जन्माभिषेके 'सुरपबिरचितैर्भूषणैरिद्धशोभम् । सनिष्कान्तावघोर सुमतिमतिमतिं केवलज्ञानसिद्धा
वीशानं निती तत्पुरुषमपरुष शान्तये संश्रयध्वम् ॥ ८७ ॥ इत्याचे भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसङ्ग्रहे सुमतितीर्थपुराणं नाम
समाप्तमेकपाशचम पर्व॥५१॥
सबको सिद्धि प्रदान करें ॥८६॥ जो भगवान् स्वर्गावतरणके समय गर्भकल्याणकके उत्सवमें 'सद्योजात' कहलाये, जन्माभिषेकके समय इन्द्रोंके व्रजसे विरचित आभूषणोंसे सुशोभित होकर 'वाम' कहलाये, दीक्षा-कल्याणकके समय 'अघोर कहलाये, केवलज्ञानकी प्राप्ति होनेपर 'ईशान' कहलाये और निर्वाण होने पर 'तत्पुरुष' कहलाये ऐसे रागद्वेष रहित अतिशय पूज्य भगवान् सुमतिनाथका शान्तिके लिए हे भव्य जीवो ! आश्रय ग्रहण करो ॥७॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहमें
सुमतिनाथ तीर्थंकरका पुराण वर्णन करनेवाला इक्यावनवाँ पर्व पूर्ण हुआ।
१ सुरपतिरचितै-ध०, क०।
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