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महापुराणे उत्तरपुराणम्
द्रुतविलम्बितम् मणिमतिः खचरी गुणभूषणा
कृतनिदानमृतेरति'कोपिनी। ततयशा समभूदिह सुव्रता
परिरता जनकेशसुता सती ॥ ७३० ॥
मालिनी इह सचिवतनूजश्चन्द्रचूलस्य मित्रं
विजयविदितनामाऽजायत 'स्वस्तृतीये । कथितकनकचूलो लालितो दिव्यभोगै
रभवदमितवीर्यः सूर्यवंशे स रामः ॥ ७३१ ॥ जनयतु बलदेवो देवदेवो दुरन्ताद्
दुरितदुरुदयोत्थादृष्यदुःखाद्दवीयान् । अवनतभुवनेशो विश्वदृश्वा विरागो
निखिलसुखनिवासः सोऽष्टमोऽभीष्टमस्मान् ॥ ७३२ ॥ इत्याचे भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसङ्महे मुनिसुव्रततीर्थकर-हरिषेणचक्रवति
रामबलदेवलक्ष्मीधरकेशवसीतारावणपुराणं परिसमाप्तमष्टषष्टं पर्व ॥६८॥
इसी क्षेत्रके मलयदेशमें चन्द्रचूल नामका राजपुत्र था, जो अत्यन्त दुराचारी था। जीवनके पिछले भागमें तपश्चरण कर वह सनत्कुमार स्वर्गमें देव हुआ फिर वहाँसे आकर यहाँ अर्धचक्री लक्ष्मण हुआ था॥७२६॥ सीता पहले गुणरूपी आभूषणोंसे सहित मणिमति नामकी विद्याधरी थी। उसने अत्यन्त कुपित होकर निदान मरण किया जिससे यशको विस्तृत करनेवाली तथा अच्छे व्रतोंका पालन करनेवाली जनकपुत्री सती सीता हुई ॥ ७३० ॥ रामचन्द्रका जीव पहले मलय देशके मंत्रीका पुत्र चन्द्रचूलका मित्र विजय नामसे प्रसिद्ध था फिर तीसरे स्वर्गमें दिव्य भोगोंसे लालित कनकचूल नामका प्रसिद्ध देव हुआ और फिर सूर्यवंशमें अपरिमित बलको धारण करनेवाला रामचन्द्र हुआ।। ७३१ ।। जो दुःखदायी पापकर्मके दुष्ट उदयसे उत्पन्न होनेवाले निन्दनीय दुःखसे बहुत दूर रहते थे, जिन्होंने समस्त इन्द्रोंको नम्र बना दिया था, जो सर्वज्ञ थे, वीतराग थे,
स्त सुखोंके भाण्डार थे और जो अन्तमें देवोंके देव हुए-सिद्ध अवस्थाको प्राप्त हुए ऐसे अष्टम बलभद्र श्री रामचन्द्रजी हम लोगोंकी इष्ट-सिद्धि करें ॥७३२॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीत त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणके संग्रहमें मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर, हरिषेण चक्रवर्ती, राम बलभद्र, लक्ष्मीधर (लक्ष्मण) नारायण,
सीता तथा रावणके पुराणका वर्णन करनेवाला अड़सठवाँ पर्व समाप्त हुआ। ६८॥
१-रपि ल । २ स्वर्गे । ३ विरागी ल० |
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