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पारिभषिक शब्द-कोश
मुनि
दान देने के समय होनेवाले पांच आश्चर्यजनक कार्य१. रत्नवृष्टि, २. देवदुन्दुभिका बजना, ३. पुष्पवृष्टि, ४. मन्द सुगन्ध पवनका चलना और ५. अहोदानं अहोदानंका शब्द होना ८४१४१ आष्टाह्निकी पूजा-कार्तिक, फा. ल्गुन और आषाढ़के अन्तिम आठ दिनोंका आष्टाह्निक पर्व होता है इसमें खासकर नन्दी. श्वर द्वीपमें स्थित ५२ जिनालयोंको पूजा होती है। वही आष्टाह्निकी पूजा कहलाती
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[अ] अघाति-१ वेदनीय २ आयु ३ नाम और ४ गोत्र ये चार अघातिकर्म हैं। ५४।२२८ अणिमादिगुण-१ अणिमा २ महिमा ३ गरिमा ४ लधिमा ५ प्राप्ति ६ प्राकाम्य ७ ईशित्व और ८ वशित्व ये आठ अणिमादि गुण है ४९।१३ अनुयोग-शास्त्रोंके विषयवार विभागको अनुयोग कहते है। बेचार है-(१)प्रथमानुयोगमहापुरुषोंके जीवनक्रमको प्रकट करनेवाला (२)करणानुयोगजीवोंकी विशेषता तथा लोक आलोकका वर्णन करनेवाला (३) चरणानुयोग-गृहस्थ और मुनियोंके चरित्रका वर्णन करने वाला (४) द्रव्यानुयोगजीवादि सात सत्त्व अथवा छह द्रव्योंका वर्णन करनेवाला५४.६ अमीक्ष्णज्ञानोपयोग- सोलह कारणभावनाओं में एक भावना
६३।३२३ अमूढष्टिता-सम्यग्दर्शनका एक अङ्ग
६३१३१७ अवगाढहक- आज्ञासमुद्भव, मार्गसमुद्भव आदि सम्यक्त्व के दश भेदों में-से भेद ५४॥२२६ अज्ञानमिथ्यात्व-पुण्य, पाप और धर्मके मानसे दूर रहनेवाले जोवोंके जो मिथ्यात्वरूप परिणाम है वह अज्ञानमिथ्यात्व है
६२।२९८ अर्थज-सम्यग्दर्शनका एक भेद
. ७४४४०,४७ भवसन्म-एक प्रकारके भ्रष्ट
७६।१९४ अष्टगुण-सिद्ध अवस्थामें जानावरणाद कोका क्षय हो जानेसे निम्नांकित आठ गुण प्रकट होते हैं-१. ज्ञान, २. दर्शन, ३. अव्याबाध सुख, ४. सम्यक्व, ५. अवगाहनत्व, ६. सूक्ष्मत्व, ७. अगुरुलघुत्व और ८. वीर्यत्व ४८१५२ अष्टाङ्ग निमित्तज्ञान-१. अन्त. रिक्ष, २. भौम ३. अङ्ग ४. स्वर ५. व्य जन, ६. लक्षण ७. सिन्न और ८. स्वप्न
६२।१८१-१९० अहमिन्द्र-सोलहवें स्वर्गके आगे के देव महमिन्द्र कहलाते हैं उनमें राजा प्रजाका व्यवहार नहीं होता। सब एक समान वैभवके धारक होते हैं। ४२१९
[ आ ] आगमभक्ति-प्रवचनभक्ति-एक भावना ६३।३२७ आचाम्लवर्धन-उपवासका व्रत विशेष
७१।४५६ आज्ञासमुद्भव-सम्यग्दर्शनका एक भेद ७४१४३९,४४१ आदिसंहनन-वज्रर्गभनाराच संहनन ६७ १५३ आदिम संस्थान-समचतुरस्त्र संस्थान ६७।१५३ आय संस्थान-प्रथम समचतुरन संस्थान जिसमें शरीर सुडौल सुन्दर होता है ४८।१४ आवश्यकापरिहाणि-एक भावना
६३॥३२८ आश्रय पत्रक-जीर्थकरादिमहान् पुण्याधिकारीमुनियोंको बाहार
ईर्यादिपञ्चक-१. ईर्या,२. भाषा, ३. ऐषणा, ४. आदान निक्षेपण और ५. प्रतिष्ठापन ये पांच समितियां ईर्यापञ्चकके नामसे प्रसिद्ध है। ६१११९
भेद
[3] उपदेशोत्थ-सम्यग्दर्शनका एक
७४|४३९,४४३ उपवृंहण-सम्यग्दर्शनका एक
अंग उपासकक्रिया-श्रावकाचारकी विधि
६३।२९९ उभयनय-पदार्थ में रहनेवाले परस्पर विरोधी अनेक धर्मोमेंसे विवक्षावश एकको ग्रहण करनेवाला ज्ञान नय कहलाता है। इसके व्यवहार और निश्चय अथवा द्रव्यायिक और पर्यायाथिकके भेदसे दो भेद हैं।
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