Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 693
________________ तलप्रहार-चप्पड़ ७४।१०८ तलवर-कोतवाल ७०।१५४ तानव-कृशता ६६।९८ तानव-शरीर सम्बन्धी ६६।९८ तुज-पुत्र ७०।१५ तुयकल्याण-ज्ञानकल्याणक ६११४३ तुर्यावगमोत्कर्ष- मनःपर्य यज्ञान को उत्कृष्टता ५९।२०३ तोक-पुत्र ५७४८६ तृणभुक्कुल- पशुओंका समूह ७१.१६२ तृतीयावगम-अवधिज्ञान ६३।२७ त्रयस्त्रिशत्समुद्रायु- तैतीस सागरकी आयुवाला असंख्यात वर्षाका एक सागर होता है। यहाँ छन्दकी अनुकूलतासे सागरका पर्यायवाची समुद्र शब्दका प्रयोग हुआ है ४८।१३ त्रायक-रक्षक ७६।४०७ त्रिजगत्पति-तीर्थकर ६७।२४ त्रिज्ञानलोचन-अवधिज्ञानी ४८।४४ निर्धान्ति-तीन प्रदक्षिणा ७०।३१ त्रिशुद्धि-मन, वचन, कायकी शुद्धि ७०।२ त्वष्टुयोग-ब्रह्मयोग ७१।३८ साधारण शब्दकोष हुम्नद्युति-स्वर्णके समान कान्ति- नार्पत्य-राज्य ( नृपतेः कर्म वाला ६६०५० नापत्यम् ) ४८।३० धुसद्-देव ५७.३० निकृत्त-छिन्न, कटा हुवा दाक्ष्य-चतुराई ७५॥३५० ७१।१०१ दासेर-दासीका पुत्र ६२१३२६ निधीश-कुबेर ७१२४ ।। दिवसावसिति-सायंकाल निःप्रवीचार-मैथुन रहित ६१।१२ ७४।३०४ निवन्धन-कारण ७२।७।। निघृण-निर्दय ६८२० दिव्यसदस्-समवसरण ६२।४८६ निर्विण्ण-खिन्न ४८।१३८ दिविज-दर ७०।३८५ दिविजेन्द्र-देवेन्द्र ६८।३८ निर्वृति-मोक्ष ४८०९४ दिवौकस्-देव ७०।११ निवेग-वैराग्य ६३।१०९ निवेद-वैराग्य ४९।३ दुर्गत-दरिद्र ७०१२०० निाम-युद्धके विस्तारसे रहित दूष्यलक्ष्मा-दुषित लक्षणोंसे युक्त ६१३ ६७.१५९ निलिम्प-देव ६३।११३ दृप्त-अहंकारी ६३.१६१ निलिम्पेश-इन्द्र ५११३८ देवभूयं-देवपर्याय ७४/७५ निष्ठा-समाप्ति ५४।२९ . देवाद्रि-सुपेरुपर्वत ७०।२९२ निष्ठितार्थ-कृतकृत्य ६३।२७३ दैष्टिक-भाग्यवादी ५४१२६२ निःष्पन्द-निश्चेष्ट ४८।१२३ दोर्दण्ड-भुजदण्ड ५५॥३ निशि -तलवार, क्रूर ५४१२२ दोष-भुमा ६२।२६३ निसृष्टार्थ-राजदूत ७३.१२१ दौहद-दोहला ७०।३४३ निःसङ्ग-स्व-निग्रंथ अवस्था द्वोपार्धचक्रवार-मानुषोत्तर पर्वत ७०।४६ ५४१३५ निहतसकलघाती - ज्ञानावरण, [ ] दर्शनावरण, मोह और अन्तधनेश-कुबेर ७१४२ राय इन चार घातियाकर्मोंधरागोचर-भूमिगोपर राजा को नष्ट करनेवाले ६१५५ ७०।२६७ नैर्गुण्य-निष्फलता ५०१५ - धर्माध्यक्ष-न्यायाधीश ७६।३४० नैःसजय-निर्ग्रन्थ दशा ६१७ धर्माधिकरण-न्यायाधीश ५९। न्यग्रोध-बटवृक्ष ६६८ न्याय्य-न्याययुक्त ६३३३७५ धा-धर्मयुक्त ६३३३७५ धृतायति-सुन्दर भविष्यसे युक्त पञ्चवर्ग-पांचका वर्ग अर्थात् ५x ध्याति-ध्यान ६११५२ ५= २५ पच्चास ६३.४५५ ध्वजिनी-सेना ६८१५४८ पशवाण-काम ७५।३३६ पञ्चमनक्षत्र-मृगशिरा नक्षत्र [न ] ४९।१६ नमोयायी-विद्याधर ७०।१०४ - पञ्जमावारपार-पांचा क्षोर. नाकीश-देवेन्द्र ५४११७१ समुद्र ५७ ३३ मागरा-धरणेन्द्र ६७।१७५ पश्नमाम्बुधि-क्षीरसागर ६७४४३ १७४ दम्मजम्मण-पाखण्डका विस्तार ४९।१ दर-अल्प ४८०२१ दरनिद्रा-थोड़ी निद्रा ६३३३८७ दर्पिष्ट-अहंकारी ६२।१२२ द्विज-पक्षी ६६८ द्विज-दांत ७६।३९२ द्विजावकी-दन्तपंक्ति ७५१५६८ द्वितीयकल्याण-जन्म कल्याणक का उत्सव ६९।३१ घुगायक-स्वगके गायक ५७।२९ मुनि-लौकान्तिक देव ६६५४३ ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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