Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 691
________________ साधारण शब्दकोष ६६३ इभ्य-धनाढ्य ७२१२४३ [आ] आजवंजव-संसार ५१११८ आदि-कल्याण-गर्भकल्याणक ६१०१७ आदिकल्पेश-प्रथम स्वर्गका इन्द्र-सौधर्मेन्द्र ४९.२५ आदित्योद्गमवेला-सूर्योदयका समय ७५१४९० आद्यचक्रिवद्-प्रथम चक्रवर्ती भरतके समान ४८१७६ आद्यश्रेणी-क्षपक श्रेणी ६३.२३४ आनन्दनाटक-भगवान के जन्मोत्सवके समय इन्द्र के द्वारा किया जानेवाला एक विशिष्ट नृत्य ४९।२५ आप्तता-ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोह बौर अन्तराय इन चार घातियाकर्मोंके नष्ट होनेपर आप्त-मरहन्त अवस्था प्रकट होती है । ४८।४२ आभिगामिक-उत्तम ५०।३९ आमय-रोग ७४।४०७ आमरं-देवों सम्बन्धी ४८७० आरनाल-कांजी ७४।३४२ आरातीय-पाचार्य परम्परासे प्राप्त ५६९५ आद्रतण्डुलारोपण-गीले चावलों पर चढ़ना, विवाहके समय होनेवाला एक नेग (दस्तूर ) ७१।१५१ वाप-परराष्ट्रको चिन्ता ७०.१७ आशानेकप-दिग्गज ६८।५४१ आशुशुक्षणि-बग्नि ७११६ आश्वयुज-धासोज, कुंवारका महीना ५६।५८ दाना १९५८ माहव-युद्ध ४८१५४ आहार्य-आभूषण ७२।७५ [ ] इन-सूर्य ६२॥३८९ इभ्य-वैश्य ७६।३७ ई-स्तुति ७३।१६५ [] उत्कोच-घूस.७५।२८ उत्सेध-शरीरकी ऊंचाई ४८७३ उदक-श्रेष्ठ ५१।११ उद्यन्-उगता हुआ ६९।२० उद्गगम-उत्पत्ति ५४।२३ उद्गम-फूल ५६८ उपधि-परिग्रह ६६।४८ उपरत-मृत ६८:२७३ उपशल्यं-नगरके समीप ६६७ उपांशु-एकान्त ७२६८५ उपासक-श्रावक ७६।२१९ उपासकवत-श्रावको वत ५४.१४४ [] ऊजयन्ताचल-गिरिनार पर्वत ७२.१९० ऊर्ध्वव्रज्या-ऊर्ध्वगमन ७१.१९७ ... [ए] एकपति-पतिव्रत ६२१४१ एकमायस्व-एकपत्नीव्रत ६२१४१ एनस-पाप ४८।१०१ [ऐ] ऐकागारिक-पोर ७६।६८ ऐलविल-कुबेर ४८।२० [ ओ] औरग-उरग-सर्प सम्बन्धी५९।३७ [क] कण्ठीरवस्व-सिंहपना ७३१६७ कण्ठीरवादि-सिंहादि तिर्यञ्च कम्र-मनोहर ६३।३४६ कराखुक-छडूंदर ७१।३२१ करेणु-हस्तिनी ७३ १३ कलधौत-स्वर्ण ६१११२९ कलिन्दकन्या-यमुना नदी ७०।३४६ कल्प-स्वर्ग ७०७९ कल्पाग-कल्पवृक्ष ५९।३ कल्याणयोग्य-विवाहके योग्य ७१.१४४ कल्याणविधिपूर्वक-विवाहपूर्वक ६३।११७ कलापी-मयूर ६७।२९९ कंसमैथुन-कंसका साला .७०।४४७ कान्ततावधि-सौन्दर्य की सीमा ६२.३५१ काममन्त्र-कामशास्त्र ६३७८ कामनीयक-सौन्दर्य ५२०२९ कामसोदर्य-प्रद्युम्नका भाई ७२।१७० कायस्थिति-माहार ७४१३१८ कार्तस्वरघट-स्वर्णपट ६१११९ कालानुकारिता-यमका अनु. करण ६६।११३ कालिन्दी-यमुना ७०१०१ कीचकद्वन्द्वता-चिड़ी-चिड़वाका जोड़ा ६५।६७ कुक्कुटसंपास्य-पास-पास में बसे कुक्कुटसप हुप गाँव इतने पासमें कि जिससे एक गांवका मुर्गा उड़कर वहां अनायास पहुँच सके कदर्य-अत्यन्त कृपण ५४१११६ कनकोपल-सुवर्णपाष.ण ४८०९३ कनीयस्-छोटा ६६।१०३ ।। कपिरोमाल्यवल्ली-करेंचकी लता, जिससे खुजली उठने लगती है ७४६४७३ कमलोपमा-समी तुल्य ५९।२५५ कुन्थु-एक प्रकारके जीव ६४।१ कुशाग्रीयता-तीक्ष्णता ७४.५४७ कुशेशय-कमल ६३३१९७ कूल-किनारा ५२१२ कृकवाकु-मुर्गा ६३.१५० कृतान्त-यम ४८६१ कृतान्तवक्त्र-यमराजका मुख ७०।१५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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