Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 695
________________ मागिक रंग बजानेवाला ७६।९० मिथुन-दम्पती ७०१८२ मुष्टि-मुना ७० ३५० ५१।२८ मूज के मृगोरकर- मृगोंका ७१।१५७ सृतिनियन्ध-मृत्युकी समूह ७०।२०८ मृतिमूलधन मृत्युरूपी मूळपन ६९/६ मेघान्त-शरद ऋतु ६१।२४ मैथुन - साला ७५।४३० [य] यतिव्रात- मुनिसमूह ५६ ५४ यम - युगल ७०1३८४ युयुत्सा- युद्ध करनेकी इच्छा ७६।२७६ योग- अप्राप्तकी प्राप्ति ६२।३५ हठ [<] रख्या गली ७६/३३५ राजताचल- विजयार्धं ६२।२१ राजवृषभ - चक्रवर्ती ६७८८ राजसिंहचर- राजसिंहका जीव जो बब मधुकीड हुआ धारक ५६।१८ ६१।७५ रुन्द्रबुद्धि - विशाल बुद्धि ७१।२ वेव- विशाल वैभवका पर्वत Jain Education International [ल ] लप ५१।३७ लवसत्तम - अहमिन्द्र ६९ ९१ लिप्सु प्राप्त करनेका इच्छुक ७६।१७५ लोमांस - वीणाका एक दोष ७०।२७१ लोक सतृष्ण ४८।११७ बोलालिता - चंचल भ्रमरपना ५१।३८ साधारण शब्दकोष [ व ] वक्षोदनं छाती -- - ६८।१४६ वचोहर - दूत ६८|४०७ वदान्य-दानवीर, उदार हृदय ५२/३९ वणिग्वर्यशरण-रोड गन्धोत्कटका घर ७५।६५९ वनज - कमल ७०८२५२ वनजाकर-कमलाकर, तालाब ७०/२५२ बनवारण - जंगली हाथी ६३।१५९ वन्दारु- स्तुति पाठक, चारण ७१९० वर्णत्रय क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र विदेह क्षेत्र में ये ही तीन वर्ण होते हैं । ब्राह्मण वर्ण नहीं होता ५४।११ वल्ममाषी - सत्य बोलनेवाला ६३।२५६ वल्लकि - वीणा ७० २६४ वसुधारा-रत्नोंकी ५१।२० वसुधागेह - भूमिगृह तलघर ६८।२८ प्रमाण वाचाट-बहुत ७०।२२९ धारा वस्तक - इकरा ६७।३०६ वाग्विस-दिव्यध्वनि ६३।७६ बोलनेवाला वाचिक सन्देश ६२०१०३ वातारित एरण्डका वृक्ष ६३/६४ बादकण्डतिवादको खुजली ७२।१४ वादकण्डूया बाद करनेकी खुजली ६३।५० वायुमार्ग प्राकाश ७१.४११ वारुणीदि-पश्चिम दिशा ६८२०५ वार्मुक्कार्मुकनिर्मासि - इन्द्रधनुषके समान नश्वर ४८।१२६ For Private & Personal Use Only वासु-इन्द्र ५६११ वि-पक्षी ६८।३४३ विकायसायक- कामके ७० ६८ विकूर्च - दाढ़ी मूंछ से ७०१४८८ ६६७ बाण - रहित विकृतद्धिं विक्रिया धारक ४८।४५ विक्रम डग ७०।२१० विगतासुता मृत्यु ६२।३५६ विग्रह - शरीर ५९ । १०२ विग्रह-युद्ध ६८०४१७ विधात-उपसर्ग ६३।१२८ विचिकित्सा-ग्लानि ६२ ५०१ विजयाब्ज - विजयका शंख ऋद्धि के ६८।६३१ बिता - वैश्यपुत्री ७५।७२ वितर्क-विचार ५१।१० विदुष्यणी सभा ७०१२८० विद्वर श्रेष्ठ विद्वान् ६२।१२४ विधा भोजन ५९/२६८ विधी- मूर्ख ७४८८ विधूतवैकल्य-पूर्ण ६३/४१७ विनम्यन्वय- विनमिका वंश ६८८ विनरसञ्चार - मनुष्योंके संचारसे रहित ७५।११३ विपक्षक- पंखसे रहित ६८ ३४३ विपाशितपन्धन रहित किया हुआ ७१।४ विपुत्र-पुत्र रहित ७०.८४ विपुण्यक - पुण्यहीन ७०.२०१ विप्रलम्मन - ठगना ६७।३४७ विभ्रंश - विनाश ७४१८९ चिचन्दिषु बन्दना करनेके इच्छुक ६७.३ विशांपति-प्रजापति- राजा ४८३२ विश्रसावधि - मरणान्त ५८ ९ विश्रम्भ- विश्वास ५४.१४५ www.jainelibrary.org

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