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सप्ततितम पर्व
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तृतीयो वसुगिर्याख्यः परेऽपि बहवो गताः । तदा कुशार्थविषये तर्द्वशाम्बरभास्वतः ॥ ९२ ॥ अवार्यनिजशौर्येण निजिंताशेषविद्विषः । ख्यातशौर्यपुराधीशसूरसेनमहीपतेः ॥ १३ ॥ सुतस्य शूरवीरस्य धारिण्याश्च तनूद्भवौ । विख्यातोऽन्धकवृष्टिश्च पतिवृष्टिर्नरादिवाक ॥ १४ ॥ धर्मावान्धकवृष्टश्च सुभद्रायाश्च तुग्वराः । समुद्रविजयोऽक्षोभ्यस्ततः स्तिमितसागरः ॥ ९५॥ हिमवान् विजयो विद्वानचलो धारणाह्वयः । पूरणः पूरितार्थीच्छो नवमोऽप्यभिनन्दनः ॥ ९६ ॥ वसुदेवोऽन्तिमश्चैवं दशाभूबन शशिप्रभाः । कुन्ती माद्री च सोमे वा सुते प्रादुर्बभूवतुः ॥ ९७ ॥ समुद्रविजयादीनां नवानां सुरतप्रदाः । शिवदेव्यनु तस्य धृतीश्वराथ स्वयम्प्रभा ॥ ९८॥ सुनीताख्या च शीता च प्रियावाक च प्रभावती। कालिङ्गी सुप्रभा चेति बभूवुर्भुवनोत्तमाः ॥ ९९ ॥ पद्मावत्या द्वितीयस्य वृष्टेश्च तनयास्त्रयः । उग्रदेवमहाद्यक्तिसेनान्ताश्च गुणान्विताः॥१०॥ गान्धारी च सुता प्रादुरभवन् शुभदायिनः। अथ कौरवमुख्यस्य हस्तिनाख्यपुरेशिनः ॥ १० ॥ शक्तिनाममहीशस्य शतक्याश्च पराशरः । तस्य मत्स्यकुलोत्पनराजपुत्र्यां सुतोऽभवत् ॥ १०२ ॥ सत्यवत्यां सुधीर्याप्तः पुनाससुभद्रयोः। तराष्ट्रो महान् पाण्डुर्विदुरश्च सुतास्त्रयः ॥ १०३ ॥ अथात्रैत्य विहारार्थ कदाचिद्वञमालिनि । नभोयायिनि विस्मृत्य गते हस्ताङ्गलीयकम् ॥ १.४॥ विलोक्य पाण्डुभूपालो गहने तत्समग्रहीत् । स्मृत्वा खगं विवृत्यैत्य मुद्रिका तामितस्ततः १०५॥
अन्विच्छन्तं विलोक्याह पाण्डुः किं मृग्यते त्वया । इति तद्वचनं श्रुत्वा विद्यान्मम मुद्रिका ॥ १०६ ॥ - विनष्टेत्यवदत्तस्य पाण्डुश्चैतामदर्शयत् । पुनः किमनया कृत्यमिति तस्यानुयोजनात् ॥ १०७॥ प्राप्त हुए राज्यका चिरकाल तक उपभोग करता रहा। उसीके सन्तानमें हरिगिरि, हिमगिरि तथा वसुगिरि आदि अनेक राजा हुए। उन्हीं में कुशार्थ देशके शौर्यपुर नगरका स्वामी राजा शूरसेन हुआ जो कि हरिवंश रूपी आकाशका सूर्य था और अपनी शूरवीरतासे जिसने समस्त शत्रुओंको जीत लिया था। राजा शूरसेनके वीर नामका एक पुत्र था उसकी स्त्रीका नाम धारिणी था। इन दोनोंके अन्धकवृष्टि और नरवृष्टि नामके दो पुत्र हए॥६१-६४॥ अन्धकवृष्टिकी रानीका नाम सुभद्रा था। उन दोनोंके धर्मके समान गम्भीर समुद्रविजय १, स्तिमितसागर २, हिमवान् ३, विजय ४, विद्वान् अचल ५, धारण ६, पूरण ७, पूरितार्थीच्छ ८, अभिनन्दन ६ और वसुदेव १० ये चन्द्रमाके समान कान्तिवाले दश पुत्र हुए तथा चन्द्रिकाके समान कान्तिवाली कुन्ती और माद्री नामकी दो पुत्रियाँ हई॥५-६७॥ समुद्रविजय आदि पहलेके नौ पुत्रोंके क्रमसे संभोग सुखको प्रदान करनेवाली शिवदेवी, धृतीश्वरा, स्वयंप्रभा, सुनीता, सीता, प्रियावाक्, प्रभावती, कालिङ्गी और सुप्रभा नामकी संसारमें सबसे उत्तम स्त्रियाँ थीं ॥६-६६ ॥ राजा शूरवीरके द्वितीय पुत्र नरवृष्टिकी रानीका नाम पद्मावती था और उससे उनके उग्रसेन, देवसेन तथा महासेन नामके तीन गुणी पुत्र उत्पन्न हुए
॥ इनके सिवाय एक गन्धारी नामकी पुत्री भी हुई। ये सब पुत्र-पुत्रियाँ अत्यन्त सुख देने वाले थे। इधर हस्तिनापुर नगरमें कौरव वंशी राजा शक्ति राज्य करता था। उसकी शतकी नामकी रानीसे पराशर नामका पुत्र हुआ। उस पराशरके मत्स्य कुलमें उत्पन्न राजपुत्री रानी सत्यवतीसे बुद्धिमान् व्यास नामका पुत्र हुआ। व्यासकी स्त्रीका नाम सुभद्रा था इसलिए तदनन्तर उन दोनोंके धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर ये तीन पुत्र हुए ।। १०१-१०३ ॥
अथानन्तर-किसी एक समय वनमाली नामका विद्याधर क्रीड़ा करनेके लिए हस्तिनापुरके वनमें आया था। वह वहाँ अपने हाथकी अंगूठी भूलकर चला गया। इधर राजा पाण्डु भी उसी वनमें घूम रहे थे। इन्हें वह अंगूठी दिखी तो इन्होंने उठा ली। जब उस विद्याधरको अंगूठीका स्मरण आया तब वह लौटकर उसी वनमें पाया तथा यहाँ वहाँ उसकी खोज करने लगा। उसे ऐसा करते देख पाण्डुने कहा कि आप क्या खोज रहे हैं ? पाण्डुके वचन सुनकर विद्याधरने कहा कि मेरी
१ धर्मा इव । २ चन्द्रिके इव । ३ धृतिस्वराथ ख०, ग० । धृतीश्वरा ल० । ४ शवक्याश्च ग०, ५०, म. शत्वक्याश्च खः ।
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