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महापुराणे उत्तरपुराणम्
महापुराणस्य पुराणपुंसः पुरा पुराणे तदकारि किञ्चित् । कवी शिनानेन यथा न काव्यचर्चासु चेतोविकलाः कवीन्द्राः ॥ ३९ ॥ स जयति जिनसेनाचार्यवर्यः कवीड्यः
विमलमुनिगणेढ्यः भव्यमालासमीढ्यः ।
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सकलगुणसमाढ्यो दुष्टवादीभसिंहो
विदितसकलशास्त्रः सर्वराजेन्द्रवन्द्यः ॥ ४० ॥
यदि सकलकवीन्द्रप्रोक्तसूक्त प्रचार
श्रवणसरसचेतास्तत्त्वमेवं सखे स्याः ॥
कविवर जिनसेनाचार्यवक्त्रारविन्द
प्रणिगदितपुराणाकर्णनाभ्यर्णकर्णः ॥ ४१ ॥
स जयति गुणभद्रः सर्वयोगीन्द्रवन्द्यः
सकलकविवराणामग्रिमः सूरिवन्धः ।
जितमदन विलासो दिक्चलकीर्तिकेतु
दुरिततरुकुठारः सर्वभूपालवन्यः ॥ ४२ ॥
धर्मः कश्चिदिहास्ति नैतदुचितं वक्तुं पुराणं महत्
श्रन्याः किन्तु कथाविषष्टिपुरुषाख्यानं चरित्रार्णवः ।
किनका मन हरण नहीं करते ? अर्थात् सभीका करते हैं ||३८|| महाप्राचीन पुराण पुरुष भगवान् आदिनाथ इस पुराण में कवियोंके स्वामी इन जिनसेनाचार्यने ऐसा कुछ अद्भुत कार्य किया है कि इसके रहते कविलोग काव्यकी चर्चाओं में कभी भी हृदयरहित नहीं होते || ३६ || वे जिनसेनाचार्य जयवन्त रहें जो कि ऋवियोंके द्वारा स्तुत्य हैं, निर्मल मुनियोंके समूह जिनकी स्तुति करते हैं, भव्य जीवोंका समूह जिनका स्तवन करता है, जो समस्त गुणोंसे सहित हैं, दुष्टवादी रूपी हाथियों को जीतने के लिए सिंहके समान हैं, समस्त शास्त्रोंके जाननेवाले हैं, और सब राजाधिराज जिन्हें नमस्कार करते हैं ।। ४० ।। हे मित्र ! यदि तेरा चित्त, समस्त कवियोंके द्वारा कहे हुए सुभाषितोंका समूह सुननेमें सरस है तो तू कवि श्रेष्ठ जिनसेनाचार्य के मुखारविन्दसे कहे हुए इस पुराणके सुनने में अपने कर्ण निकट कर ।। ४१ ॥
गुणभद्राचार्य भी जयवन्त रहें जो कि समस्त योगियों के द्वारा बन्दनीय हैं, समस्त श्रेष्ठ कवियों में अप्रगामी हैं, आचायोंके द्वारा वन्दना करनेके योग्य हैं, जिन्होंने कामक विलासको जीत लिया है, जिनकी कीर्ति रूपी पताका समस्त दिशाओं में फहरा रही हैं, जो पापरूपी वृक्षके नष्ट करनेमें कुठार के समान हैं और समस्त राजाओं के द्वारा वन्दनीय हैं ।। ४२ ।। 'यह महापुराण केवल पुराण ही है, ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि यह अद्भुत धर्मशास्त्र है, इसकी कथा श्रवणीय हैं - अत्यन्त
१ कविवर जिनसेनाचार्यवर्यार्यमासौ मधुरमणिनवाच्यं नाभिसूनोः पुराणे । तदनु च गुणभद्राचार्यवाचो विचित्राः सकलकवि करीन्द्रावातसिंहा जयन्ति ॥ म०, क०, ग०, घ० । २ सौ लोकः क०, ग०, घ०, म० पुस्तके नास्ति ।
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