Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 589
________________ षट्सप्ततितम पर्व ५६१ प्रोष्ठिलाल्यः कटप्रश्च क्षत्रियः श्रेष्ठिसम्झकः । सप्तमः शङ्खनामा च नन्दनोऽथ सुनन्दवाक् ॥ ४७२ ॥ शशाङ्कः सेवकः प्रेमकश्चातोरणसम्ज्ञकः । रैवतो वासुदेवाख्यो बलदेवस्ततः परः ॥ ४७३॥ भगलियंगलिद्वैपायनः कनकसम्ज्ञकः । पादान्तो नारदश्चारुपादः सत्यकिपुत्रकः ॥ ४७४ ॥ प्रयोविंशतिरित्येते ससारस्निप्रमादिकाः। तत्रैवान्येऽपि तीर्थेशाश्चतुविशतिसग्मिताः ॥ ४७५ ॥ तत्राचा षोडशप्रान्तशताब्दायुःप्रमाणकः । सप्तारस्नितनूत्सेधश्चरमस्तीर्थनायकः ॥ ४७६ ॥ पूर्वकोरिमिताब्दायुश्चापपश्चशतोच्छृितिः । तेषामाचो महापमः सुरदेवः सुपाचवाक् ॥ ४७७ ॥ स्वयंप्रभश्च सर्वात्मभूताख्यो देवपुत्रवाक । कुलपुत्रस्तथोदकः प्रोष्ठिलो जयकीर्तिवाक् ॥ ४७८ ॥ मुनिसुव्रतनामारसज्ञोऽपापाभिधानकः । निष्कषायः सविपुलो निर्मलचित्रगुप्तकः ॥ ४७९ ॥ समाधिगुप्तसम्ज्ञश्च स्वयम्भूरिति नामभाक । अनिवर्ती च विजयो विमलो देवपालवाक् ॥४८० ॥ अनन्तवीर्यो विश्वेन्द्रवन्दिताघ्रिसरोरुहः । कालेऽस्मिन्नेव चक्रेशा भाविनो द्वादशोच्छूियः ॥ ४८१ ॥ भरतो दीर्घदन्तश्च मुक्तदन्तस्तृतीयकः । गूढदन्तश्चतुर्थस्तु श्रीषणः पञ्चमो मतः ॥ ४८२ ॥ षष्ठः श्रीभूतिशब्दाख्यः श्रीकान्तः सतमः स्मृतः। पमोऽष्टमो महापनो विचित्रादिश्च वाहनः ॥४८३॥ दशमोऽस्मात्परः ख्यातश्चक्री विमलवाहनः । अरिष्टसेनः सर्वान्स्यः सम्पन्नः सर्वसम्पदा ॥ ४८४ ॥ सीरिणोऽपि नवैवात्र तत्राद्यश्चन्द्रनामकः । महाचन्द्रो द्वितीयः स्यारतश्चक्रधरो भवेत् ॥ ४८५ ॥ हरिचन्द्राभिधः सिंहचन्द्रश्चन्द्रो वरादिकः । पूर्णचन्द्रः सुचन्द्रश्च श्रीचन्द्रः केशवाचिंतः ॥ ४८६ ॥ केशवाच नवैवात्र तेष्वायो नन्दिनामकः । नन्दिमित्रो द्वितीयः स्यामन्दिषेणस्ततः परः ॥ ४८७ ॥ नन्दिभृतिश्चतुर्थस्तु प्रतीतः पञ्चमो बलः । षष्ठो महाबलस्तेषु सप्तमोऽतिबलाइयः ॥ ४८८॥ अष्टमोऽभूत् त्रिपृष्ठाख्यो द्विपृष्ठो नवमो विभुः। तद्वैरिणापि तावन्त एव विज्ञेयसज्ञकाः ॥ ४८९ ॥ ततस्तत्कालपर्यन्ते भवेत्सुषमदुष्षमा । आदौ तस्या मनुष्याणां पञ्चचापशतोच्छूितिः॥ ४९० ॥ नन्दन ६, सुनन्द १०, शशाङ्क ११, सेवक १२, प्रेमक १३, अतोरण १४, रैवत १५, वासुदेव १६,भगलि १७, वागलि १८.द्वैपायन १९, कनकपाद २०, नारद २१, चारुपाद २२,और सत्यकिपुत्र २३,ये तेईस जीव आगे तीथकर होंगे। सात हाथको आदि लेकर इनके शरीरकी ऊँचाई होगी । इस प्रकार तेईस ये तथा एक अन्य मिलाकर चौबीस तीर्थकर होंगे ॥ ४७१-४७५ ॥ उनमेंसे पहले तीर्थकर सोलहवें कुलकर होंगे । सौ वर्ष उनकी आयु होगी और सात अरनि ऊँचा शरीर होगा। अन्तिम तीर्थंकरकी आयु एक करोड़ वर्ष पूर्वकी होगी और शरीर पाँचसौ धनुष ऊँचा होगा। उन तीर्थंकरोंमें पहले तीर्थंकर महापद्म होंगे । उनके बाद निम्नलिखित २३ तीर्थंकर और होंगे-सुरदेव १, सुपार्श्व २, स्वयंप्रभ ३, सर्वात्मभूत ४, देवपुत्र ५, कुलपुत्र ६, उदङ्क ७, प्रोष्ठिल ८, जयकीर्ति ६, मुनिसुव्रत १०, अरनाथ ११, अपाप १२, निष्कषाय १३, विपुल १४, निर्मल १५, चित्रगुप्त १६, समाधिगुप्त १७,स्वयंभू १८, अनिवर्ती १६, विजय २०, विमल २१, देवपाल २२ और अनन्तवीर्य २३ । इन समस्त तीर्थंकरोंके चरण-कमलोंकी समस्त इन्द्र लोग सदा पूजा करेंगे। इसी तीसरे कालमें उत्कृष्ट लक्ष्मीके धारक १२ बारह चक्रवती भी होंगे ॥४७६-४८१ ।। उनके नाम इस प्रकार होंगे भरत, दूसरा दीर्घदन्त, तीसरा मुक्तदन्त, चौथा गूढदन्त, पाँचवाँ श्रीषेण, छठवाँ श्रीभूति, सातवाँ श्रीकान्त, आठवाँ पद्म, नौवाँ महापद्म, दशवाँ विचित्र-वाहन, ग्यारहवाँ विमलवाहन और बारहवाँ सब सम्पदाओंसे सम्पन्न अरिष्टसेन ॥ ४८२-४८४ ।। नौ बलभद्र भी इसी कालमें होंगे। उनके नाम क्रमानुसार इस प्रकार हैं १ चन्द्र, २ महाचन्द्र, ३ चक्रधर, ४ हरिचन्द्र, ५सिंहचन्द्र, ६ वरचन्द्र, ७पूर्णचन्द्र, ८ सुचन्द्र और नौवाँ नारायणके द्वारा पूजित श्रीचन्द्र ॥४८५-४८६॥ नौ नारायण भी इसी कालमें होंगे उनके नाम इस प्रकार होंगे।पहला नन्दी,दूसरा नन्दिमित्र,तीसरा नन्दिषेण, चौथा नन्दिभूति, पाँचवाँसुप्रसिद्धबल, छठवाँ महाबल, सातवाँ अतिबल, आठवाँ त्रिपृष्ठ और नौवाँ द्विपृष्ठ नामक विभुहोगा। इन नारायणोंके शत्रु नौ प्रतिनारायण भी होंगे। उनके नाम अन्य ग्रन्थोंसे जान लेना चाहिए।। ४८७-४८६ ।। तदनन्तर इस कालके बाद सुषम-दुष्षम काल आवेगा उसके १ निष्कषायः सविपुलश्चित्रगुप्तसमादयः' इत्यपि पाठः किन्त्वत्रैकतीर्थकरनाम श्रुटितं भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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