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महापुराणे उत्तरपुराणम
आर्या
कमठः कुक्कुटसर्पः पञ्चमभूजोऽहिरभवदथ नरके । raisaiगः सिंहो नरकी नरपोऽनु शम्बरो दिविजः ॥ १७० ॥
इत्यार्षे भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे पार्श्वतीर्थंकरपुराणं नाम त्रिसप्ततितमं पर्व ॥ ७३ ॥
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कर्मों के समूहको नष्ट करनेवाला भगवान पार्श्वनाथ हुआ ॥ १६६ ॥ कमठका जीव पहले कमठ था, फिर कुक्कुट सर्प हुआ, फिर पाँचवें नरक गया, फिर अजगर हुआ, फिर नरक गया, फिर भील होकर नरक गया, फिर सिंह होकर नरक गया और फिर महीपाल राजा होकर शम्बर देव हुआ ।। १७० ।। इस प्रकार आप नाम से प्रसिद्ध भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहमें पाश्र्वनाथ तीर्थंकरके पुराणका वर्णन करनेवाला तिहत्तरवाँ पर्व समाप्त हुआ ।। ७३ ।।
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