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महापुराणे उत्तरपुराणम् सम्प्राप्य षोडशसमाः स्वसनाभिभेद।
जीवन्धरः कुरुत तदुरितं न भव्याः॥ ६९० ॥
मालिनी क स पितृनृपमृत्युः क श्मशाने प्रसूति
र्वणिगुपगमन कक स्वयक्षोपकारः । क तदुदयविधानं शत्रुघातः कचित्रम्
विधिविलसितमेतत्पश्य जीवन्धरेऽस्मिन् ॥ ६९१ ॥ इत्या भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे चन्दनायिका
जीवन्धरचरितं नाम पञ्चसप्ततितम पर्व ॥५॥
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नमस्कार करता हूँ। ६८६ ॥ जीवन्धर कुमारने पूर्वभवमें मूर्खतासे दयाको दूर कर हंसके बच्चेको सोलह दिन तक उसके माता-पितासे अलग रक्खा था इसीलिए उन्हें अपने कुटुम्बसे अलग रहना पड़ा था अतः हे भव्य जनो! पापको दूरसे ही छोड़ो ।। ६६०॥ देखो, कहाँ तो पिता राजा सत्यन्धरकी मृत्यु, कहाँ श्मशानमें जन्म लेना, कहाँ वैश्यके घर जाकर पलना, कहाँ अपने द्वारा यक्षका उपकार होना, कहाँ वह अभ्युदयकी प्राप्ति, और कहाँ शत्रुका घात करना। इन जीवन्धर महाराजमें ही यह विचित्र कर्मोका विपाक है ॥ ६६१ ॥ इस प्रकार आर्य नामसे प्रसिद्ध, भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहमें चन्दना
आर्यिका और जीवन्धर स्वामीका चरित वर्णन करनेवाला यह पचहत्तरवाँ
३ स्वजनाभिमेदं मः।
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