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पञ्चसप्ततितमं पर्व इति प्रातः समुत्थाय विनयेनोपसृत्य तम् । साप्राक्षीकेषु शाखेषु प्रबोधो भवतामिति ॥१८॥ धर्मार्थकामशास्त्राणि भूयोऽभ्यस्तानि यत्नतः । तेषु धर्मार्थयोः कामशाखारफलविनिश्चयः ॥१९॥ कथं तदिति चेरिकश्चिन्मया तत्र निरूप्यते । पञ्चेन्द्रियाणि तेषाच विषयाः पञ्चधा स्मृताः॥ २०॥ स्पर्शादयोऽष्टया स्पर्शाः कर्कशायाः श्रतोदिताः। रसोऽपि षड़विधः प्रोक्तो मधुरादिमनीषिभिः॥१२॥ कतक: सहजति गन्धोऽपि द्विविधो मतः । सर्वः सुगन्धदुर्गन्धचेतनेतरवस्तुगः ॥ ६२२॥ रूपं पञ्चविधं श्वेतकष्णादिप्रविभागभाक् । षड्जादयः स्वराः सप्त जीवाजीवसमुजवाः ॥ ६२३ ॥ इत्यष्टाविंशतिर्भूत्वा द्वैगुण्य पुनरागताः । इष्टानिष्टविकल्पाभ्यां षट्पञ्चाशद्विकल्पनाः ॥ ६२४॥ तेविष्टाः कृतपुण्यानां तानि पुण्यानि धर्मतः । निषिद्धविषयत्यागो धर्मः सनिरुदाहृतः ॥ १२५ ॥ निषिद्धविषयांस्तस्मात्परिहत्य विचक्षणाः। शेषाननुभवन्तोऽत्र कामशासविदो मताः॥१२॥ त्वयानुभूयमानेषु दोषाः सन्तीह केचित् । इति तेनोदितं श्रुत्वा तदोषविनिवृतये ॥ ६२७॥ त्वयोपदेशः कर्तव्यो यास्यामि तव शिष्यताम् । इत्युदीर्णवतीं विप्रस्तां व्यनैषीत्कलादिषु ॥ १२८॥ सर्वे से पुनरन्येशुविहर्तुं वनमागमन् । स्थितस्तत्रायमेकान्तप्रदेशे गुणमालया ॥ ६२९ ॥ सह स्वाभाविक रूपमात्मनः समदर्शयत् । कन्या दृष्टुाथ तं जातसंशया सत्रपा सती ॥ ६३०॥ मौनेनावस्थिता वीक्ष्य तामेष प्राक्तनोकिभिः । चूर्णवासादिजाताभिः प्रत्याययदतिद्रुतम् ॥ १३ ॥ पुनः प्राक्तनरूपस्थः पुष्पशय्यामधिष्ठितः । कुरु मत्पदसंवाहमिति प्रेषयति स्म ताम् ॥ ६३२॥
कर गुणमालाको जैसा सुख हुआ था वैसा ही सुख इस वृद्धके गीत सुनकर हुआ। सबेरा होनपर गुणमालाने बड़ी विनयके साथ उसके पास जाकर पूछा कि आपको किन-किन शास्त्रोंका अच्छा ज्ञान है ? ।। ६१६-६१८॥ इसके उत्तरमें ब्राह्मणने कहा कि मैंने बड़े यत्नसे धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और कामशास्त्रका बार-बार अभ्यास किया है । उनमें धर्म और अर्थक फलका निश्चय कामशास्त्रसे ही होता है। वह किस प्रकार होता है ? यदि यह जानना चाहती हो तो मैं इसका कुछ निरूपण करता हूँ। इन्द्रियाँ पाँच हैं और उनके स्पर्श आदि विषय भी पाँच ही हैं। उनमेंसे स्पर्शके कर्कश आदि
आठ भेद शास्त्रोंमें कहे गये हैं। विद्वानोंने मधुर आदिके भेदसे रस भी छह प्रकारका कहा है। सुगन्ध और दुर्गन्ध रूप चेतन अचेतन वस्तुओंमें पाया जानेवाला सब तरहका गन्ध भी कृतक
और सहजके भेदसे दो प्रकारका माना गया है। श्वेत, कृष्ण आदिके भेदसे रूप पाँच तरहका कहा गया है और जीव तथा अजीवसे उत्पन्न हुए षड्ज आदि स्वर सात तरहके होते हैं । इस प्रकार सब मिलाकर पाँचों इन्द्रियोंके अट्ठाईस विषय होते हैं। इनमेंसे प्रत्येकके इष्ट, अनिष्टकी अपेक्षा दो-दो भेद हैं अतः सब मिलकर छप्पन हो जाते हैं ॥ ६१६-६२४ ॥ इनमें जो इष्ट विषय हैं वे पुण्य करनेवालोंको प्राप्त होते हैं, धर्मसे पुण्य होता है और निषिद्ध विषयोंका त्याग करना ही सजनोंने धर्म कहा है ।। ६२५ ।। इसलिए जो बुद्धिमान मनुष्य निषिद्ध विषयोंको छोड़कर शेष विषयोंका अनुभव करते हैं वे ही इस लोकमें कामशास्त्रके जाननेवाले कहे जाते हैं ।। ६२६ ॥ यह कहनेके बाद उस ब्राह्मणने गुणमालासे कहा कि तू जिन विषयोंका अनुभव करती है उनमेंसे कितनेमें ही अनेक दोष हैं । इस तरह ब्राह्मणका कहा सुनकर गुणमालाने उससे कहा कि आप उन दोषोंको दूर करनेके लिए उपदेश कीजिये मैं आपकी शिष्या हो जाऊँगी। ऐसा कहनेपर उस ब्राह्मणने गुणमालाको कला आदिकी शिक्षा देकर निपुण बना दिया ।। ६२७-६२८ ।।
एक दिन वे सब लोग विहार करनेके लिए वनमें गये थे। वहाँ जब वह एकान्त स्थानमें गुणमालाके साथ बैठा था तब उसने अपना स्वाभाविक रूप दिखा दिया। उसे देखकर कन्याको संशय उत्पन्न हो गया और वह सती लज्जासहित चुप बैठ गई। यह देखकर ब्राह्मणने सुगन्धित चूर्णसे सम्बन्ध रखनेवाली प्राचीन कथाएँ कह कर बहुत ही शीघ्र उसे विश्वास दिला दिया ।। ६२६६३१ ॥ तदनन्तर वह उसी ब्राह्मणका रूप धारण कर पुष्पशव्यापर बैठ गया और गुणमाला भी
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