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चतुःषष्टितमं पर्व
देहज्योतिषि यस्य शक्रसहिताः सर्वेऽपि मन्नाः सुरा
ज्ञानज्योतिषि पञ्चतत्वसहितं लग्नं नभचाखिलम् ।
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लक्ष्मीधामदधद्विधूतविततध्वान्तः स धामद्वय
पन्थानं कथयत्वनन्सगुणभृस्कुन्थुर्भवान्तस्य वः ॥ ५५ ॥
इत्यार्षे त्रिपष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते कुन्थुचक्रधरतीर्थंकरपुराणं परिसमाप्तं चतुःषष्टितमं पर्व ॥ ६४ ॥
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श्री कुन्थुनाथ भगवान् तुम सबके लिए अविनाशी - मोक्षलक्ष्मी प्रदान करें ॥ ५४ ॥ जिनके शरीरकी कान्तिमें इन्द्र सहित समस्त देव निमग्न हो गये, जिनकी ज्ञानरूप ज्योतिमें पञ्चतत्त्व सहित समस्त आकाश समा गया, जो लक्ष्मीके स्थान हैं, जिन्होंने फैला हुआ अज्ञानान्धकार नष्ट कर दिया, और जो अनन्त गुणोंके धारक ऐसे श्री कुन्थुनाथ भगवान् तुम सबके लिए मोक्षका निश्चय और व्यवहार मार्ग प्रदर्शित करें ॥ ५५ ॥
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराण संग्रहमें कुन्थुनाथ तीर्थंकर और चक्रवर्तीका वर्णन करनेवाला चौसठवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ ६४ ॥
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