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षट्षष्टितम पर्व
२४३ वसन्ततिलका मन्त्री चिरं जननवारिनिधौ भ्रमित्वा
पश्चाद् बलीन्द्र इति नामधरः खगेशः । दत्तादवासमरणो नरकं दुरन्तं
प्रापततः परिहरन्त्वनुबद्धवैरम् ॥ १२५॥ इत्याचे भगवद्गुणभद्राचार्यप्रणीते त्रिषष्टिलक्षणमहापुराणसंग्रहे मलितीर्थकर-पद्मचक्रि-नन्दिमित्र
बलदेव-दत्तनामवासुदेव-बलीन्द्राख्यप्रतिवासुदेवपुराणं परिसमाप्तम् ॥ ६६॥
कैवल्य-लक्ष्मीको प्राप्त हुआ ॥ १२४ ॥ मंत्रीका जीव चिरकाल तक संसार-सागरमें भ्रमण कर पीछे बीन्द्र नामका विद्याधर हुआ और दत्त नारायणके हाथसे मरकर भयंकर नरकमें पहुँचा, इसलिए सजन पुरुषोंको चैरका संस्कार छोड़ देना चाहिये ॥ १२५ ॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध भगवद्गुणभद्राचार्य प्रणीत त्रिषष्टिलक्षण महापुराणसंग्रहमें मल्लिनाथतीर्थकर, पद्मचक्रवर्ती, नन्दिमित्र बलदेव, दत्त नारायण और बलीन्द्र प्रति
नारायणके पुराणका वर्णन करने वाला छयासठवाँ पर्व समाप्त हुआ।
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