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द्विषष्टितमं पर्व
बुध्वा सपर्थर्य सर्व बोध्याभावाद्भवच्छिदः । यस्यावबोधो विश्रान्तः स शान्तिः शान्तयेऽस्तु वः ॥१॥ वक्तृश्रोतृकथाभेदान् वर्णयित्वा पुरा बुधः। पश्चाद्धर्मकथां याद् गम्भीरार्था यथार्थहक् ॥ २ ॥ विद्वत्वं सच्चरित्रत्वं दयालुत्वं प्रगल्भता । वाक्सौभाग्येङ्गितज्ञत्वे प्रश्नक्षोदसहिष्णुता ॥३॥ सौमुख्यं लोकविज्ञानं ख्यातिपूजाघभीक्षणम् । मिताभिधानमित्यादि गुणा धर्मोपदेष्टरि ॥ ४ ॥ तत्त्वज्ञेऽप्यपचारित्रे वक्तर्येतत्कथं स्वयम् । न चरेदिति तत्प्रोक्तं न गृहन्ति पृथग्जनाः ॥५॥ सच्चारित्रेऽप्यशास्त्रज्ञे वक्तर्यल्पश्रुतोद्धता-। सहासयुक्तं सन्मार्गे विदधत्यवधीरणाम् ॥ ६॥ विद्वत्त्वसच्चरित्रत्वे मुख्य वक्तरि लक्षणम् । अबाधितस्वरूपं वा जीवस्य ज्ञानदर्शने ॥ ७ ॥ युक्तमेतदयुक्तं चेत्युक्तं सम्यग्विचारयन् । स्थाने कुर्वन्नुपालम्भ भल्या सूक्तं समाददन् ॥८॥ असारप्राग्ग्रहीतार्थविशेषाविहितादरः । अहसन्स्खलितस्थाने गुरुभक्तः क्षमापरः ॥९॥ संसारभीरुराप्रोक्तवाग्धारणपरायणः । 'शुकमृद्धंससंप्रोक्तगुणः श्रोता निगद्यते ॥१०॥ जीवाजीवादितत्त्वार्थो यत्र सम्यग्निरूप्यते । तनुसंमृतिभोगेषु निर्वेदश्च हितैषिणाम् ॥ ११ ॥ दानपूजातपःशीलविशेषाश्च विशेषतः । बन्धमोक्षौ तयोर्हेतुफले वाऽसुभृतां पृथक ॥ १२॥ घटामटति युक्त्यैव सदसत्वादिकल्पना । ख्याता प्राणिदया यत्र मातेव हितकारिणी ॥ १३ ॥
संसारको नष्ट करनेवाले जिन शान्तिनाथ भगवानका ज्ञान, पर्याय सहित समस्त द्रव्योंको जानकर आगे जानने योग्य द्रव्य न रहनेसे विश्रान्त हो गया वे शान्तिनाथ भगवान् तुम सबकी शान्तिके लिए हों।॥ १ ॥ पदार्थके यथार्थस्वरूपको देखनेवाला विद्वान् पहले वक्ता, श्रोता तथा कथाके भेदोंका वर्णन कर पीछे गम्भीर अर्थसे भरी हुई धर्मकथा कहे ॥२॥ विद्वान होना, श्रेष्ठ चारित्र धारण करना, दयालु होना, बुद्धिमान होना, बोलनेमें चतुर होना, दूसरोंके इशारेको समझ लेना, प्रश्नोंके उपद्रवको सहन करना, मुख अच्छा होना, लोक-व्यवहारका ज्ञाता होना, प्रसिद्धि तथा पूजासे युक्त होना और थोड़ा बोलना, इत्यादि धर्मोपदेश देने वालेके गुण हैं ।। ३-४ ॥ यदि वक्ता तत्त्वोंका जानकार होकर भी चारित्रसे रहित होगा तो यह कहे अनुसार स्वयं आचरण क्यों नहीं करता ऐसा सोचकर साधारण मनुष्य उसकी बातको ग्रहण नहीं करेंगे ॥ ५॥ यदि वक्ता सम्यक् चारित्रसे युक्त होकर भी शास्त्रका ज्ञाता नहीं होगा तो वह थोड़ेसे शास्त्र ज्ञानसे उद्धत हुए मनुष्योंके हास्ययुक्त वचनोंसे समीचीन मोक्षमार्गकी हँसी करावेगा ॥ ६ ॥ जिस प्रकार ज्ञान और दर्शन जीवका अबाधित स्वरूप है उसी प्रकार विद्वत्ता और सच्चरित्रता वक्ताका मुख्य लक्षण है॥७॥ 'यह योग्य है ? अथवा अयोग्य हे ?? इस प्रकार म्ही हुई बातका अच्छी तरह विचार कर सकता हो, अवसर पर अयोग्य बातके दोष कह सकता हो, उत्तम बातको भक्तिप्ले ग्रहण करता हो, उपदेशश्रवणके पहले ग्रहण किये हुए असार उपदेशमें जो विशेष आदर अथवा हठ नहीं करता हो, भूल हो जाने पर जो हँसी नहीं करता हो, गुरुभक्त हो, क्षमावान् हो, संसारसे डरनेवाला हो, कहे हुए वचनोंको धारण करने में तत्पर हो, तोता मिट्टी अथवा हंसके गुणोंसे सहित हो वह श्रोता कहलाता है।। ८-१०॥ जिसमें जीव अजीव आदि पदार्थोंका अच्छी तरह निरूपण किया जाता हो, हितेच्छु मनुष्योंको शरीर, संसार और भोगोंसे वैराग्य प्राप्त कराया जाता हो, दान पूजा तप और शीलकी विशेषताएँ विशेषताके साथ बतलाई जाती हों. जीवोंके लिए बन्ध. मोक्ष तथा उनके फलोंका पृथक-पृथक वर्णन किया जाता हो, जिसमें सत् और असत्की कल्पना युक्तिसे की जाती हो, जहाँ माताके समान हित करनेवाली दयाका खूब वर्णन हो और जिसके सुननेसे प्राणी सर्वपरि.
१ पशु क०, ग, घ० ।
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