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छक्खंडागम
ऊपर जिस प्रकार गुणस्थानोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व बतलाया गया है, इसी प्रकार मार्गणास्थानोंमें भी सूत्रकारने जहां जितने गुणस्थान सम्भव हैं, वहां उनके अल्पबहुत्वका प्रतिपादन किया है, जिसका अनुभव पाठकगण इस प्ररूपणाके स्वाध्याय करते हुए करेंगे।
चूलिका परिचय इस प्रकार जीवस्थान नामक प्रथम खण्डकी आठों प्ररूपणाओंका विषय-परिचय कराया .. गया। अब इसी प्रथम खण्डकी नौ चूलिकाएं भी सूत्रकारने कहीं हैं। जो बातें आठों अनुयोगद्वारों (प्ररूपणाओं ) में कहनेसे रह गई हैं और जिनका उनसे सम्बन्ध है, या जानना आवश्यक है । उनकी जानकारीके लिए प्रथम खण्डके परिशिष्टरूप प्रकरणोंको चूलिका कहते हैं ।
जीवस्थानखण्डकी नौ चूलिकाएं कही गई हैं, जिनके नाम हम प्रारम्भमें बतला आये हैं। यहां क्रमशः उनके विषयोंका परिचय कराया जाता है।
१ प्रकृतिसमुत्कीर्तनचूलिका जीवोंके गति, जाति आदिके रूपमें जो नानाभेद देखनेमें आते हैं, उनका कारण कर्म है। यह कर्म क्या वस्तु है, उसका क्या स्वरूप है और उसके कितने भेद-प्रभेद हैं ? इत्यादि शंकाओंके समाधानके लिए आचार्यने इस चूलिकाका निर्माण किया है।
जीव अपने राग-द्वेषरूप विभावपरिणतिके द्वारा जिन कार्मण पुद्गल स्कन्धोंको खींचकर अपने प्रदेशोंके साथ बांधता है, उन्हें कर्म या प्रकृति कहते हैं। कर्मकी मूल प्रकृतियां आठ हैं१ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ आयु, ६ नाम, ७ गोत्र और ८ अन्तराय । आत्माके ज्ञानगुणके आवरण करनेवाले कर्मको ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। इसकी उत्तर प्रकृतियां ५ हैं। आत्माके दर्शनगुणके आवरण करनेवाले कर्मको दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं। इसकी उत्तर प्रकृतियां ९ हैं। आत्माको सुख या दुःखके वेदन करानेवाले कर्मको वेदनीय कहते हैं। इसकी उत्तर प्रकृतियां २ हैं । आत्माको सांसारिक पदार्थों में मोहित करनेवाले कर्मको मोहनीय कहते हैं। इसकी उत्तर प्रकृतियां २८ हैं। जीवको नरक, देव, मनुष्य आदिके भयोंमें रोक रखनेवाले कर्मको आयु कर्म कहते हैं। इसकी उत्तर प्रकृतियां ४ हैं । जीवके शरीर, अंगउपांग, और आकार-प्रकारके निर्माण करनेवाले कर्मको नामकर्म कहते हैं। इसके पिण्डरूपमें ४२
और अपिण्डरूपमें ९३ प्रकृतियां हैं। उच्च और नीच कुलमें उत्पन्न करनेवाले कर्मको गोत्रकर्म कहते हैं। इसकी २ प्रकृतियां हैं । जीवके भोग, उपभोग आदि मनोवांछित वस्तुकी प्राप्तिमें विघ्न करनेवाले कर्मको अन्तराय कहते हैं। इसकी ५ उत्तर प्रकृतियां हैं। इस प्रकार कौकी ८ मूल प्रकृतियों और १४८ उत्तर प्रकृतियोंका वर्णन इस प्रकृतिसमुत्कीर्त्तना चूलिकामें किया गया है ।
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