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छक्खंडागम
पांचवें से लेकर बारहवें तक आठ गुणस्थानोंके भावोंका प्रतिपादन चारित्र मोहनीय कर्मके क्षयोपशम, उपशम और क्षय की अपेक्षासे किया गया है । अर्थात् पांचवें, छठे और सातवें गुणस्थान में चारित्र - मोहके क्षयोपशम से क्षायोपशमिक भाव होता है। आठवें, नववें, दशवे और ग्यारहवें इन चार उपशामक गुणस्थानों में चारित्रमोहके उपशमसे औपशमिक भाव, तथा क्षपकश्रेणी सम्बन्धी चारों गुणस्थानों में चारित्रमोहनीयके क्षयसे क्षायिक भाव होता है । तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानोंमें जो क्षायिक भाव पाये जाते हैं वे घातिया कर्मोंके क्षयसे उत्पन्न हुए जानना चाहिए ।
जिस प्रकार से गुणस्थानोंमें यह भावोंका निरूपण किया गया है, उसी प्रकार मार्गणास्थानों में भी संभव गुणस्थानोंकी अपेक्षा भावोंका विस्तारसे निरूपण किया गया है, जिसका अनुभव पाठकगण ग्रन्थके स्वाध्याय करनेपर ही सहजमें कर सकेंगे ।
८ अल्पबहुत्वप्ररूपणा
इस प्ररूपणामें संख्याप्ररूपणाके आधारपर गुणस्थानों और मार्गणास्थानों में पाये जानेवाले जीवों की संख्याकृत अल्पता और अधिकताका प्रतिपादन किया गया है । गुणस्थानों में जीवोंका अब इस प्रकार बतलाया गया है- अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानोंमें उपशामक जीव प्रवेशकी अपेक्षा परस्पर समान हैं और शेष सब गुणस्थानोंके प्रमाणसे अल्प हैं, क्यों कि इन तीनों ही गुणस्थानोंमें पृथक् पृथक् रूपसे प्रवेश करनेवाले जीव एक, दो, तीन को आदि लेकर अधिक से अधिक चौपन तक ही पाये जाते हैं । इतने कम जीव इन तीनों उपशामक गुणस्थानोंको छोड़कर अन्य किसी गुणस्थानमें नहीं पाये जाते हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीव भी पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं, क्योंकि उक्त उपशामक जीव ही चढ़ते हुए ग्यारहवें गुणस्थान में प्रवेश करते हैं । उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थोंसे अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवर्ती क्षपक संख्यातगुणित हैं, क्योंकि उपशामक के एक गुणस्थानमें अधिकतम प्रवेश करनेवाले चौपन जीवोंकी अपेक्षा क्षपकके एक गुणस्थानमें अधिकतम प्रवेश करनेवाले एक सौ आठ जीवोंके दूने प्रमाणस्वरूप संख्यातगुणितता पाई जाती है । क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं, क्योंकि उक्त क्षपक जीव ही इस बारहवें गुणस्थान में प्रवेश करते हैं । सयोगिकेवली और अयोगिकेवली जिन प्रवेशकी अपेक्षा दोनों ही परस्पर समान होकर पूर्वोक्तप्रमाण अर्थात् एक सौ आठ ही हैं । किन्तु सयोगिकेवली जिन संचयकालकी अपेक्षा प्रवेश करनेवाले जीवोंसे संख्यातगुणित हैं । सयोगिकेवली जिनोंसे सातवें गुणस्थानवाले अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं । अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव असंख्यातगुणित हैं; क्योंकि इनमें मनुष्य संयतासंयतों के साथ तिर्यंच संयतासंयत राशि सम्मिलित है । संयतासंयतों से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं । सासादनसम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव
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