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चौथा व्याख्यान पुनर्जन्म
महानुभावों !
श्रुतस्थविर भगवत- रचित श्री उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवे अध्ययन में अल्पससारी आत्मा का वर्णन है । उस पर से आत्मा का विषय चल रहा है।
आत्मा एक महान् प्रवासी है और वह आदिकाल से अपने कर्मानुसार चार गति और चोरासी लाख जीव-योनियो में परिभ्रमण करता रहता है । इस परिभ्रमण का अन्त तभी आता है जब कि यह मुक्ति की प्राप्ति कर लेता है । यह तथ्य आपको गत व्याख्यान में विस्तार से बतायी है, परन्तु कुछ को पुनर्जन्म के विषय में शंका है, इसलिए उसके सम्बन्ध में अब हम विशेष विचारणा करेंगे।
जिन्हें पुनर्जन्म के विषय में शका है, वे कहते है - "अगर हमारा पुनर्जन्म हुआ हो, तो हमे पूर्वभव की बातें याद क्यों नहीं रहतीं ? जब हम पच्चीस, पचास या उससे भी ज्यादा वर्षों को बातें याद रख सकते है, तत्र हमें पूर्वजन्म की बाते भी याद रहनी ही चाहिए। कोई यह कहे कि, हमारी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र नहीं है कि, यह सब याद रह सके, तो इस जगत में ऐसी स्मरण शक्तिवाले मनुष्य भी पडे हैं, जो एक बार देखा हुआ या एक बार पढा हुआ भूलते नहीं हैं तो उन्हें भी पूर्वजन्म की बाते याद नहीं हैं, इसलिए यह मानने का कारण है कि, पुनर्जन्म - जैसी कोई चीज नहीं है । "