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प्रात्मतत्व-विचार से काम पर लगें।" सुनार मन में खुश हुआ-सोचता था कि, पानी पीते ही ये लोग ढह पडेंगे।
सुनार अपने साथ लोटा-डोर लाया था। उसे लेकर कुएँ पर गया और झुक कर पानी निकालने लगा कि, चोरों ने धक्का मार कर उसे कुएँ में फेंक दिया । सुनार का राम रम गया । फिर, चोर पाट के पास आये । वहाँ नहर के असर से सब-के-सब जमीन पर लुढ़क गये।
इस तरह सोने की पाट ने दो राजपूत, एक बाबानी, एक सुनार और ६ चोरो के प्राण लिये । फिर भी, वह तो वहीं ज्यों-की-त्यो पड़ी हुई थी। कोई उसका एक टुकड़ा भी नहीं ले सका था। ___लक्ष्मी ने कहा- देखा सरस्वतो ! लोग मेरे पीछे कैसे पागल हो जाते हैं ! मैं उनकी इच्छा नहीं करती, उन्हें दुतकारती हूँ, फिर भी वे मेरे पीछे पड़ते हैं और स्वय नष्ट होते हैं।"
सरस्वती ने कहा-"इसका अर्थ यह है कि, जो अज्ञानी हैं; मूर्ख हैं, वे तेरे पीछे घूमते हैं और दुःखी होते हैं । और, जो जानी हैं, समझटार हैं, वे मेरी आराधना-उपासना मे मस्त होकर आनन्द करते हैं । अब तू अपनी यह लीला समेट ले, नहीं तो न जाने कितने लोभी मारे नायेंगे।"
उसके बाद लक्ष्मी ने वह पाट वहाँ से अदृश्य कर दी।
आयुष्यकर्म की चार प्रकृतियाँ है-देव-आयुष्य, मनुष्य-आयुष्य, तियेच-आयुष्य और नारक-आयुष्य । इनमें पहली तीन प्रकृतियाँ शुभ हैं
और चौथी अशुभ । देव, मनुष्य और तिर्थच को अपना जीवन प्रिय होता है, जबकि नारकी जीवों को अपना जीवन प्रिय नहीं होता। वे उसमें से जल्दी से जल्दी छूट जाना चाहते हैं ।
शुभाशुभ की गणना मे नाम कर्म की ७१ प्रकृतियाँ ली जाती हैंयह अभी स्पष्ट कर चुके हैं। उनमें ३७ शुभ हैं और ३४ अशुभ ' वे इस प्रकार: