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श्रात्मतत्व-विचार
देवता साक्षी है, वह बता देगा कि हममें से दोपी कौन है और निर्दोष कौन ।' इस पर धर्माधिकारी ने दोनो की जमानत ली और अगले दिन सुबह बुलाया ।
पापबुद्धि ने घर जाकर सारी हकीकत अपने पिता को कह सुनायी और सुझाया कि, 'यह धन मैने चुराया है, पर यह आपके वचन से मुझे पच सकता है ।'
पिता ने पूछा - 'सो कैसे ?'
!
पापबुद्धि ने कहा - " पितानी उस प्रदेश में खीजड़े का एक बड़ा पेड़ है । उसमें एक बड़ी कोटर है। उसमे आप अभी से छिप जायें ताकि किसी को खबर न पड़े । बाद में सुबह धर्माधिकारी आदि के साथ मैं वहाँ आऊँगा और पूछूंगा – 'हे वृक्षदेवता ! तुम हम दोनों के साक्षी हो; कह दो कि हममें से चोर कौन है ?' उस समय आप कहियेगा - 'धर्मबुद्धि चोर है ।'
पापबुद्धि का पिता उस जैसा पापी नहीं था । उसने कहा- "यह उपाय ठीक नहीं है । मुझे लगता है कि इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा ।" पर, पापबुद्धि ने हठ को और बताया - "अगर आप इस तरह नहीं करेंगे तो हम सत्र के बारह बन जायेंगे । फिर मुझसे न कहियेगा कि, यह क्या हुआ !” पापी आदमी दूसरे को भी पाप में घसीटता है और दुःखी करता है ।
दूसरा उपाय न होने से पिता ने यह बात स्वीकार कर ली और रात के अंधेरे में उस पेड़ के कोटर में छिप गया ।
सुबह हुई और धर्मबुद्धि और पापबुद्धि धर्माधिकारी आदि कई राज्याधिकारियों के साथ धनवाली जगह आये । वृक्ष में से वचन निकले - "धर्मबुद्धि चोर है ।"
उन वचनों को सुनकर अधिकारियों को आश्चर्य हुआ । वे विचार करने लगे कि धर्मबुद्धि को क्या दड दिया जाये । उधर धर्मबुद्धि की स्थिति