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सम्यक ज्ञान
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को आना के भग करने का दोष लगता है। इसलिए, श्रुताध्ययन करनेवाले को सूत्रपाठ करते समय व्यंजनशुद्धि पर पूरा लक्ष्य देना चाहिए।
अर्थशुद्धि ज्ञानाचार का सातवाँ प्रकार है। ज्ञान-प्राप्ति के लिए, अर्थशुद्धि भी व्यंजन-शुद्धि की तरह ही आवश्यक है । अर्थ की शुद्धि न. रहने से अनर्थ होता है और उससे स्व-पर को भारी नुकसान होता है। 'अज से यज्ञ करना' इस वाक्य में अम का अर्थ 'तीन वर्ष बाद की डांगर' लेने के बदले 'चकरा लिया जाये, तो डागर होने के बदले बकरे का बलिदान देने का प्रसंग आयेगा और उस घोर हिंसा के फलस्वरूप अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ेंगे।
सूत्र का उच्चार शुद्ध करना और साथ ही उसका अर्थ भी शुद्ध विचारना, यह तदुभयशुद्धि-नामक ज्ञानाचार का आठवाँ प्रकार है।
जो इस रीति से ज्ञानाचार का पालन करते हैं, उनके सम्यक्त्व की वृद्धि होती है और परिणामतः वे सम्यक्चारित्रधारी बनकर अपना कल्याण कर सकते है।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा!
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