Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 801
________________ सम्यक् चारित्र ६६६ यानी जहर और जहरी चीजों का व्यापार, (११) यत्रपोलन कर्म, यानी अनाज, बीज तथा फलफूल पेल कर देने का काम । (१२) लाछनकर्म, यानी पशुओं के अगो को छेदने, दाग देने वगैरह का काम । (१३) दवदानकर्म, यानी वन, खेत वगैरह में आग लगाने का काम । (१४) जलशोपण कर्म यानी सरोवर, तालाब वगैरह सुखाने का काम और (१५) असतीपोषण, यानी कुलटा या व्याभिचारिणी स्त्रियो का पोषण करने का या हिंसक प्राणियों को पाल कर उन्हें बेचने का काम । आठवाँ अनर्थदंड-विरमण-व्रत ___ जो हिंसा विशिष्ट प्रयोजन या अनिवार्य कारण बिना की जाये, वह अनर्थदंड कहलाती है। उससे बचने का व्रत अनर्थदंड-विरमण-व्रत है। इस व्रत में अपध्यान, पापोपदेश, हिंस्रप्रदान और प्रमादाचरण का त्याग करना होता है। अपध्यान यानी आर्त और रौद्रध्यान, पापोपदेश अर्थात् ऐसी सूचना-सलाह देना, जिससे दूसरे को पाप करने की प्रेरणा मिले; हिंस्रप्रदान यानी हिंसाकारी शस्त्रसाधन दूसरे को देना और प्रमादाचरण यानी नाटक, तमाशा,पशुओं का युद्ध, गजीफा-सोगठा वगैरह खेल आदि में भाग लेना। नवाँ सामायिक-व्रत पाप-व्यापार और दुर्ध्यान से रहित आत्मा का दोघड़ी तक समताभाक सामायिक व्रत है। सामायिक करते समय श्रावक साधु के समान हो जाता है। इसलिए, उसे बहुत बार करने का उपदेश है | सामायिक करते समय मन के दस दोष, वचन के दस दोष और काया के बारह दोष टालने चाहिए, तभी सामायिक शुद्ध हुआ माना जायेगा। शुद्ध सामायिक की कीमत इस जगत के किसी पार्थिव पदार्थ से नहीं हो सकती। इसलिए कहा है दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवणस्स खंडिओ ऐगो। इयरो पुण सामाइयं, करेइ न पहुप्पए तस्ल ॥

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