Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 802
________________ ७०० श्रात्मतत्व-विचार -अगर कोई रोज लाख खाडी सोने का दान करे और दूसरा मनुष्य एक सामायिक करे; तो भी दान देनेवाला सामायिक करनेवाले के समान नहीं हो सकता, अर्थात् उसके बराबर लाभ नहीं प्राप्त कर सकता । दसवाँ देशावकाशिक-व्रत व्रतों मे रखी गयी सामान्य छूटों का दैनिक जीवन भर के लिए संकोच करना देशावकाशिक-व्रत कहलाता है। उसमें रोज प्रातःकाल नीचे की चौदह बातों के विषय में नियम धारण करने होते है-(१) वस्तु, (२) द्रव्य, (३) विकृति, (४) जूते, (५) ताम्बूल, (६) वस्त्र, (७) कुसुम, (८) वाहन, (९) शयन, पलंग, बिस्तर, (१०) विलेपन, (११) ब्रह्मचर्य, (१२) दिशा, (१३) स्नान और (१४)। भोजन । सारे दिन में आठ सामायिक और सुबह-शाम प्रतिक्रमण इस प्रकार कुल दस सामायिक करने का देशावकाशिक करने का व्यवहार आज प्रचलित है। ग्यारहवाँ पोषध-व्रत पर्व-तिथि आदि के दिन देशरूप से अथवा सर्वरूप से आहार, शरीर. सत्कार, गृह-व्यापार और अब्रह्मचर्य का त्याग करके आठ प्रहर या चार प्रहर तक सामायिक करना पोषध है। वारहवाँ अतिथि-संविभाग-व्रत भक्तिपूर्वक आहार, वस्त्र, पात्र आदि का अतिथि को यानी साधुओं को दान करना अतिथि-सविभाग-व्रत है। साधुओं को भक्तिपूर्वक दान देने से धन सार्थवाह ने तथा नयसार ने समकित उपार्जित किया और परंपरा से तीर्थकर नामकर्म बाँधा तथा संगम ने दूसरे भव में शालिभद्र बनकर अपूर्व ऋद्धिसिद्धि भोगी, यह आप जानते होंगे।

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