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सम्यक् चोरित्र
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में उन्हे अष्ट-प्रवचन-माता कहा गया है, कारण कि, वे महानतत्वरूप प्रवचन का पालन तथा रक्षण करने में माता-जैसा काम करती हैं।
समिति का अर्थ है, सम्यक क्रिया । गुति का अर्थ है गोपन क्रिया, अर्थात् निग्रह की क्रिया !
पाँच समितियो में पहली ईर्या समिति है। उसका अर्थ यह है कि, साधुपुरुष को खून सावधानी से चलना चाहिए। उसमे नीचे के ६ नियमों का पालन करना होता है ।
(१) दर्शन-बान-चारित्र के हेतु से चलना, अन्य हेतु से नहीं ।
(२) दिन में चलना, रात में नहीं । इसमें मात्रा आदि के कारण से जाने-आनेकी छूट है।
(३) अच्छे आवागमन के रास्ते पर चलना | नये मार्ग पर, कि जिसमें सजीव मिट्टी होने की आशंका हो, नहीं चलना।
(४) अच्छी तरह देखकर चलना ।
(५) नजर नीची रखकर चार हाथ भूमि का अवलोकन करते हुए चलना । नजर ऊँची रखकर या आड़ा-टेढ़ा देखते हुए नहीं चलना ।
(६) उपयोगपूर्वक चलना, विना उपयोग नहीं चलना। साधु लोग एक स्थल से दूसरे स्थल पर जाने के लिए किसी भी वाहन का उपयोग नहीं करते, कारण कि, उससे ईर्यासमिति के चौथे, पाँचवें और छठे नियम का भग होता है।
दूसरी समिति भाषा-समिति है। उसका अर्थ यह है कि, साधु पुरुष खूब सावधानी से बोले । उसमें नीचे के आठ नियमों का पालन करना होता है।
(१) क्रोध से नहीं बोलना । (२) अभिमानपूर्वक नहीं बोलना। (३) कपट से नहीं बोलना । (४) लोभ से नहीं बोलना ।