Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 810
________________ आत्मतत्व-विचार है कि, 'थोड़ी या ज्यादा, छोटी या बड़ी, सजीव या निर्जीव, किसी भी चीज का मैं स्वयं परिग्रह नहीं करूँगा, दूसरे से नहीं कराऊँगा, करनेवाले को अच्छा नहीं मानूँगा । इस महात्रत के कारण साधु किसी भी मठ या मंदिर की मालिकी नहीं रख सकता, और न धन, माल, खेत, पाधर, बाड़ी, वजीफा, हाट, हवेली या ढोर-ढाखर या रोकड़ रकम या जवाहिरात अपने पास नहीं रख सकता । साधु लोग अपने जीवन निर्वाह के लिए जो वस्त्र, पात्र आदि रखते है, उनकी गणना परिग्रह में नहीं होती, कारण कि वह ममत्वबुद्धि से नहीं बल्कि सयम के निर्वाह के लिए ही रखे जाते हैं । छठाँ रात्रिभोजन-विरमण-व्रत 2000 सर्वविरति चारित्र ग्रहण करनेवाले को पाँच महाव्रतो के अतिरिक्त छठा रात्रिभोजनविरमण - व्रत भी अवश्य लेना होता है । इस व्रत से आजीवन सर्व प्रकार के रात्रिभोजन का त्याग किया जाता है। श्री दशवैकालिकसूत्र में कहा है कि, 'धरती पर कितने ही त्रस और स्थावर सूक्ष्म नीव निश्चितरूप से होते हैं । उन जीवो के शरीर रात को दिखलायी नहीं देते, तो ईर्यासमितपूर्वक रात को गोचरी के लिए कैसे जाया जा सकता है ? दूसरे, पानी से धरती भींगी रहती है, उस पर बीन, कीड़े कीड़ियॉ भी पड़ी होती है । इन जीवो की हिंसा से दिन में भी बच सकना कठिन होता है, तो रात को तो बचा ही कैसे जा सकता है ? इसलिए रात को कैसे चला जा सकता है ? इन सब दोषों को देखकर ज्ञातपुत्र अर्थात् श्रमण भगवान् महावीर ने कहा है कि, निर्ग्रथ किसी भी प्रकार के आहार का रात्रि मे भोग न करे ।' अष्ट-प्रवचन-माता चारित्र के पालन तथा रक्षण के लिए साधु-पुरुष को बहुत करना होता है । उनमे पाँच समिति और तीन गुप्ति की मुख्यता है । शास्त्रों

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