________________
७०७
सम्यक् चारित्र यह बडा दुस्तर व्रत है, इसीलिए प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है कि 'जैसे, ग्रगण, नक्षत्रगण और तारागण में चन्द्र प्रधान है, वैसे ही विनय, शील, तप, नियम आदि गुणसमूह में ब्रहाचर्य प्रधान है।
ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए शास्त्रो मे नौ रोके कही गयी हैं। साधु उनका बरावर पालन करे ।
(१) स्त्री, पुरुष और नपुसक की बस्ती से रहित एकान्त विशुद्ध स्थान में रहना।
(२) कामकथा नहीं करना।
(३) जिस पाट, आसन या शयन पर स्त्री बैठी हो वहाँ दो घड़ी तक नहीं बैठना।
(४) रागवश होकर स्त्रियों के अंगोपाग नहीं देखना ।
(५) जहाँ दीवाल के अन्तर पर स्त्री-पुरुष का जोड़ा रहता हो, वहाँ नहीं रहना।
(६) स्त्री के साथ की हुई पूर्वक्रीड़ा का स्मरण नहीं करना । (७) मादक आहार का त्याग करना। (८) रूखासूखा आहार भी परिमाण से अधिक नहीं लेना ।
(९) शृगार-लक्षणा शरीर-गोभा का त्याग करना, अर्थात स्नान, विलेपन, उद्वर्तन, सुन्दर वस्त्र आदि का उपयोग नहीं करना।
श्री दशवैकालिकसूत्र में यह आजा की है कि, 'जिसके हाथ-पैर छेदे हुए हों, नाक-कान कटे हुए हों, ऐसी सौ वर्ष की बुढिया हो तो भी साधुपुरुष को उसका स्पर्श नहीं करना चाहिए।' ___जैन-श्रमणों की बस्तीवाले स्थान में रात को स्त्रियों को प्रवेश नहीं करने दिया जाता, यह तो आप जानते ही होंगे।
पाँचवाँ महाव्रत पाँचवॉ महाव्रत परिग्रह-विरमण-व्रत है । उससे यह प्रतिज्ञा की जाती