Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 814
________________ ७१२ आत्मतत्व-विचार (१०) ब्रह्मचर्य-ब्रह्मचर्य का मन, वचन, काया से अच्छी तरह पालन करना। पडावश्यक __ साधु को सुबह और शाम षडावश्यक की क्रियाएँ या प्रतिक्रमण करना आवश्यक है, कारण कि, उससे व्रतों में लगे दोषो की शुद्धि होती है और उसके लिए योग्य प्रायश्चित लेकर पुनः निर्मल बना जाता है । षडावश्यक मे सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान ये ६ आवश्यक होते हैं। ये आवश्यक आत्मशुद्धि के लिए बड़े उपकारक हैं और इसलिए उन्हें समस्त क्रिया का सार-रूप कहा है। ___ सर्वविरति-चारित्र को धारण करनेवाले की समझ और क्रिया कैसी होती है, यह मृगापुत्र की कथा द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है मृगापुत्र की कथा सुग्रीव-नामक एक रमणीय नगर था। उसमें बलभद्र-नामक राजा था। उसे मृगावती रानी से बलश्री नामक एक कुमार उत्पन्न हुआ था। परन्तु, लोगों में वह मृगापुत्र-नाम से प्रसिद्ध था। ____ मृगापुत्र मनोहर रमणियों के साथ अपने नन्दन-महल मे आनन्दपूर्वक क्रीड़ा करता था। एक बार उस महल के झरोखे पर बैठकर नगर का निरीक्षण कर रहा था। वहाँ एक क्षात, दान्त साधु दिखलायी पड़े। वह निर्निमेष दृष्टि से उन्हें लगातार देखता रहा । ऐसा करते हुए उसे यह अध्यवसाय हुआ कि, 'ऐसा स्वरूप मैंने पहले कहीं देखा है।' और, उसे जातिस्मरण-ज्ञान उत्पन्न हो गया। उस जान से उसने अपने पूर्व भव देखे और उसमे समादरित साधुपन याद आया । इससे चारित्र के प्रति प्रेम हुआ और विषयो के प्रति वैराग्य उत्पन्न हुआ । फिर, उसने माता-पिता के पास आकर कहा कि, "हे माता-पिता ! ___ पूर्व काल मे मैंने पाँच महाव्रतरूप संयम-धर्म पाला था, उसका स्मरण हुआ

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