Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 804
________________ ૭૦૨ प्रात्मतत्व-विचार अपने परिवार को बोधदायक कथाओं तथा सुभाषितों द्वारा धर्म का स्वरूप समझाना चाहिए; ताकि वे धर्मभावनावाले बनें। फिर विधिपूर्वक शयन करने के लिये देव-गुरु वगैरह चार का शरण अगीकार करना चाहिए। इस समय मोह के प्रति जुगुप्सा के द्वारा प्रायः अब्रह्मचर्य में विरति रखनी चाहिए और स्त्री के अगोपाग की अशुचिता आदि का विचार करके उसका त्याग करनेवाले महापुरुषों का हृदय से बहुमान करना चाहिए। फिर 'अपने चारित्रशील धर्माचार्य गुरु के आगे दीक्षा कब लूंगा?' ऐसा मनोरथ करना चाहिए। उसके बाद निद्राधीन होना चाहिए। जो इस प्रकार की दिनचर्या द्वारा अपना दिन व्यतीत करते हैं; ठनका चारित्रगठन उत्तम प्रकार से होता है। इसमें से आज कितना होता है और कितना नहीं, यह अपने दिलसे पूछ देखिये । शास्त्रकारों ने जो नियम बताये हैं, वे आपके भले के लिए हैं; इसलिए उनका यथाशक्य अधिक आदर कीजिए, यह हमें विशेष रूप से कहना है। सर्वविरति-चारित्र का वर्णन शेष रहा, वह अवसर पर किया जायेगा।

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