Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 796
________________ ६६४ आत्मतत्व-विचार (४) स्थूल-मैथुन-विरमण-व्रत । (५) परिग्रह-परिमाण-व्रत । (६) दिक-परिमाण-व्रत । (७) भोगोपभोग परिमाण-व्रत । (८) अनर्थ-दड-विरमण-व्रत । (९) सामायिक-व्रत । (१०) देशावकाशिक-व्रत । (११) पोषध-व्रत । (१२) अतिथिसविभाग व्रत । व्रतों के विभाग इन बारह व्रतों में से पहले पाँच को अणुव्रत कहते हैं, कारण कि, वे महाव्रत की अपेक्षा से अणु अर्थात् बहुत छोटे हैं। बाद के तीन गुणव्रत कहलाते हैं, कारण कि वे चारित्र के गुणो की पुष्टि करने वाले हैं। और, अन्तिम चार को शिक्षाव्रत कहा जाता है; कारण कि वे आत्मा को साधुजीवन की शिक्षा देते हैं। एक अपेक्षा से शिक्षाव्रत भी गुणव्रत ही है, अर्थात् अन्तिम सात को गुणव्रत माना जा सकता है। इसी दृष्टि से शास्त्रों में कई जगह सात गुणव्रतों का उल्लेख आता है। __पहला स्थूल-प्राणातिपात-विरमण-व्रत जिन व्रतों मे कुछ छूट-छाट न हो, वे सूक्ष्म हैं और जिनमे छूटछाट हों, वे स्थूल हैं । इस तरह पाँचों अणुव्रतों को 'स्थूल' कहा जाता है। प्राणातिपात का अर्थ है-हिंसा, विरमण पाना अर्थात् विरमना, अटकना । जिस व्रत द्वारा हिंसा करने से रुका जाये, वह प्राणातिपातविरमण-व्रत है। इस व्रत मे सकल्प से निरपेक्ष रूप से निरपराधी त्रसजीव की हिंसा का त्याग किया जाता है। इसके कुछ विवेचन से आप समझ जायेंगे।

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