Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 795
________________ सम्यक् चारित्र ६६३ सम्यक्त्वयुक्त श्रावक के बारह व्रतो का यहाँ केवल संक्षिप्त परिचय करायेंगे। वे व्रत सम्यक्त्व के आधार पर ही टिक सकते है। इसलिए पहले सम्यक्त्व की धारणा आवश्यक है। सम्यक्त्व की धारणा सम्यक्त्व और व्रतों को धारण करने की विशेष विधि है। वह उत्तम क्षेत्र में, उत्तम मुहूर्त में, परीक्षित शिष्य को, प्रभुजी के समक्ष करायी नाती है। उस समय सम्यक्त्व ग्रहण करनेवाले को यह प्रतिज्ञा करनी होती है अरिहंतो मह देवो, जावजीवं सुसाहुणो गुरुणं । जिणपन्नतं तत्त, हा सम्मतं मए गहियं ॥ -आन से मुझे यावजीवन श्री अरिहंत ही देव, सुसाधु ही गुरु और केवली भगवन्त का वचन ही तत्त्व अर्थात् धर्म-रूप मान्य है। उसके अतिरिक्त दूसरे किसी देव-गुरु-धर्म का सेवन या आदर नहीं करूँगा । इस प्रकार सम्यक्त्व को मैने देव, गुरु और संघ की साक्षी से ग्रहण किया है। बारह व्रतों का नाम श्रावक के बाहर व्रतों के नाम पहले, गुणस्थान के प्रसंग में, बता आये हैं, फिर भी यहाँ देशविरति-चारित्र का विशेष अधिकार होने से उनकी गणना पुनः करायेंगे। मत्रोच्चार में जैसे अमुक शब्दों को दो वार बोलने से उनकी शक्ति बढती है, वैसे ही नित्य उपयोगी व्रतों का नाम दूसरी चार लेने से वे अधिक पक्के होते हैं, अथवा विस्मृति हुई हो तो उनका अनुसंधान हो जाता है। बारह व्रतों के नाम इस प्रकार हैं : (१) स्थूल प्राणतिपात-विरमण-व्रत । (२) स्थूल-मृषावाद-विरमण-व्रत । (३) स्थूल अदत्तादान विरमण-व्रत ।

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