Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 793
________________ सम्यक् चारित्र ६६१ ( २० ) जो भरण-पोषण करने योग्य हों, उनका भरण-पोषण करना । माता, पिता, दादा, दादी, पत्नी, पुत्रादि परिवार तथा आश्रित सगेसम्बन्धी और नौकर-चाकर भरण-पोषण किये जाने योग्य हैं । उनमें भी माता, पिता, सती स्त्री और असमर्थ पुत्र-पुत्रियो का भरण-पोषण तो हर हालत में करना हो चाहिए - यानी नौकरी - चाकरी या सामान्य धन्धा करके भी करना चाहिए। अगर स्थिति अच्छी हो तो दूसरे सगे-सम्बन्धिर्यो का भी पोषण करना चाहिए और असहाय जाति बन्धुओं की भी यथाशक्य सहायता करनी चाहिए । ( २१ ) दीर्घदर्शी होना - लाभालाभ का पूरा विचार किये बिना किसी प्रवृत्ति में न पड़ना । अन्यथा बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है । दूरदर्शी ऐसी विपत्ति से प्रायः बचा रहता है । (२२) धर्मकथा नित्य सुनना । ( २३ ) दयालु होना । दया धर्म का मूल है । (२४) बुद्धि के आठ गुणों का सेवन करना । वे आठ गुण ये हैं ( १ ) शुश्रूषा यानी तत्त्व सुनने की इच्छा । (२) श्रवण अर्थात् तत्त्वश्रवण । ( ३ ) ग्रहण यानी सुना हुआ ग्रहण करना । ( ४ ) धारणा यानो ग्रहण किये हुए को भूलना नहीं । ( ५ ) ऊहा यानी ग्रहण किये हुए अर्थ की संगति तर्क और उदाहरणपूर्वक विचारना ( ६ ) अपोह यानी उसी अर्थ के अभाव में कैसी विरुद्ध परिस्थिति होगी यह युक्ति दृष्टान्त से देखना । ( ७ ) भ्रम आदि दोषरहित अर्थ का ज्ञान प्राप्त करना । ( ८ ) अर्थ का निश्चित बोध करना । इन आठ गुणों का सेवन करनेवाले को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति होती है । -: ( २५ ) गुण का पक्षपात करना । यहाँ गुण शब्द से क्षमा, नम्रता, सरलता, सन्तोष, उदारता, वात्सल्य, धैर्य, पवित्रता, सत्य आदि समझना चाहिए ।

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