Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 789
________________ ६८६ सम्यक चारित्र चारित्र के दो प्रकार चारित्र दो प्रकार का है-(१) देशविरति-रूप और (२) सर्वविरति-रूप। पहला ग्रहस्थ को होता है, दूसरा साधु को। यहाँ दोनों प्रकार के चारित्रों का परिचय कराया जाता है। देशविरति-चारित्र कैसे गृहस्थ को होता है ? पहले यह बतलायेंगे कि, देशविरति-चारित्र कैसे गृहस्थ को होता है। गृहस्थ तीन प्रकार के हैं-(१) असंस्कारी, (२) असस्कारी और (३) धर्मपरायण। जिनके जीवन का कोई ध्येय नहीं है; जो मनमाना जीवन व्यतीत करते हैं और दूसरों के प्रति मनमाना वर्तन करते हैं वे असस्कारी हैं। ऐसे गृहस्थ कनिष्ठ कोटि के हैं। वे अपने अमूल्य नर-तन को अवश्य गॅवा देनेवाले हैं। ऐसे असस्कारी गृहस्थों को सस्कारी बनाने के लिए महापुरुषों ने एक मागं बताया है। उस पर चलकर वे मार्गानुसारी या सस्कारी बन सकते हैं । उसके पैतीस नियम इस प्रकार हैं : ___ मार्गानुसारी के पैंतीस नियम (१) न्याय से वैभव प्राप्त करना । (२) समान कुल-आचारवाले से मगर अन्यगोत्री से विवाह करना। (३) शिष्टाचार की प्रशंसा करना । (४) ६ अन्तर-शत्रुओं का त्याग करना। काम, क्रोध, लोभ, मान, मट और हर्ष अन्तर के ये ६ शत्रु हैं। (५) इन्द्रियों को काबू मे रखना। (६ ) उपद्रववाले स्थान का त्याग करना । यहाँ उपद्रव से शत्रु की चढाई, बच्वा, सक्रामक रोगों का फैलना, दुष्काल, अतिवृष्टि आदि समझना चाहिए। ४४

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